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आमुख
सचवायेलुं जणाय छे. व्यापक प्राकृतमां तो भाववाचक तरीके 'त्तन-तण, 'इमा' अने 'प्पण' प्रत्ययो वपराय छे. [३८] भाषामां 'केटलानो पगार छे' 'केटला वरसनो छोकरो
छे' 'सो रुपियानो पगार छे' 'पांच वरसनो गुजरातीनो 'नो'
' छोकरो छे' ए बधामां 'केटलानो' 'वरसनो' प्रत्यय
रुपियानो' पदोमां जे अन्त्य 'नो' छे ते स्पष्टपणे 'परिमाण' अर्थने बतावे छे. वेदोमां ‘पञ्चदशिनोऽर्धमासाः' 'त्रिशिनो मासाः' वगेरे प्रयोगो मळे छे. 'पञ्चदशिनः' एटले 'पंदर दिवसना'--'पंदर दिवसना परिमाणवाळा' अने ' त्रिंशिनः' एटले ‘त्रीश दिवसना परिमाणवाळा' एम परिमाण अर्थने सूचववा सारु दशान्त शब्दोने अने 'त्रिंशत्' वगेरे शब्दोने ‘इन्' प्रत्यय लगाडवो एम वैदिक प्रक्रिया कहे छे. [५-१-५८ ]. जेम वैदिक 'इन्' प्रत्यय परिमाणने सूचवे छे तेम 'केटलानो' 'वरसनो' वगेरे भाषानां पदोने लागेलो 'न' प्रत्यय परिमाण अर्थने बतावे छे. 'केटलानो'-केटली संख्याना परिमाणवाळो, 'सो रुपियानो' सो रुपियानी संख्याना परिमाणवाळो, एवा अर्थमां 'केटला' अने 'रुपिया' वगैरे शब्दोने लागेलो 'न' प्रत्यय मने भासे छे के वैदिक 'इन्' नो औरस छे. ए रीते जोतां 'केटलानो' वगैरे पदो षष्ठी विभक्तिवाळां छे के प्रथमा विभक्तिवाळां छे ? ए विचारणीय छे. वर्तमानमां तो 'केटलानो' वगैरे प्रयोगो बधी भाषामां षष्ठी विभक्तिवाळा मनाय छे. तो पण ए प्रयोगो खरेखर तेवा ज छे के 'परिमाण' दर्शक 'न' प्रत्ययवाळा छे ए जरूर शोधनीय खरं. [३९] व्यापक प्राकृतमां अनुस्वारवाळा केटलाक शब्दोनो अनु
. स्वार लोप पामे छे. जेमके 'मांस' ऊपरथी 'मास.' मनुस्वारलोप
- वैदिक प्रक्रियामां पण 'मांस' अर्थमां 'मास' शब्द वपरायेलो छे. [ वैदिक ग्रामर कंडिका ८३-१]
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