________________
७०
गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति [४०] व्यापक प्राकृतमा द्विवचन अने बहुवचननां रूपो एकसरखां
बने छे. जिना, देवा, बुद्धा. वैदिक परंपरामां पण
- ए बधां रूपो एकसरखां मळे छे. उभा, देवा, ... वचन
नन्ता [ऋग्वेद पृ० १३६-६] इन्द्रावरुणा [ऋ० सं० ७-८२-१-५] मित्रावरुणा, या, सुरथां, दिविस्पृशा,
अश्विना [वै० प्र० ७-१-३९] सृण्या वगैरे. व्यापक प्राकृतमा द्विवचननो प्रयोग समूळगो नथी. तेने बदले बहुवचननां रूपो वपराय छे. त्यारे वैदिक रूपोमां द्विवचन सूचवायेलुं छे, परंतु तेना केटलांक रूपो ऊपर जणाव्या प्रमाणे बहुवचन जेवां पण छे. [४१] “सुप्-तिङ्--उपग्रह–लिङ्ग-नराणां
काल–हल–अच्-स्वर-कर्तृ-यां च । लिंग वगेरेनो विपर्यय
व्यत्ययमिच्छति शास्त्रकृदेषां
सोऽपि च सिध्यति बाहुलकेन॥"-वै० प्र०३-१-८५। अर्थात् लिंगनो विपर्यास जेवो वैदिक रूपोमा छे तेवो ज व्यापक प्राकृतमां छे. वैदिक प्रक्रियामां जणावेलुं छे के नामनी विभक्तिओनो, क्रियापदनी विभक्तिओनो, आत्मनेपद-परस्मैपदनो, लिंगनो, पुरुषोनो, कालनो, व्यंजनोनो, स्वरोनो, कारकोनो, कारकवाची प्रत्ययोनो-ए बधांनो वैदिक रूपोमां विपर्यास थाय छे. व्यापक प्राकृतमां पण आवो विपर्यास साधारण छे. [४२] लौकिक संस्कृतमां कर्तृसूचक 'तृन्' प्रत्यय वपराय छे, . तेने बदले व्यापक प्राकृतमा 'अणअ' प्रत्ययनो व्यव
त्यय हार थाय छे. वैदिक रूपोमां पण ए तृन्' ने बदले 'अन' प्रत्यय वपरायेलो छे.
५० तंत्रवार्तिक पृ० १५७ ["आकारः छन्दसि' द्विवचनादेशः"]-आनंदाश्रम ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org