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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति " सत्तम्याथेच" [पालिव्या० कारककप्प कां० ६ सू० २०] छठीने बदले द्वितीया आवे छे : " क्वचि दुतीया छडीनं अत्थे" [सू० ३६] तृतीया अने सप्तमीने बदले द्वितीया तथा छठी विभक्ति वपराय छे: "ततीयासत्तमीनं च" [ सू० ३७ ] तथा “छट्ठी च" [सू० ३८] ए ज प्रमाणे द्वितीया अने पंचमीने बदले छडी विभक्तिनो प्रयोग थाय छ : “दुतियापंचमीनं च" [सू० ३९] बीजी, त्रीजी अने निमित्तसूचक विभक्तिने बदले सप्तमी वपराय छ : “ कम्म-करण-निमित्तत्थेसु सत्तमी" [सू० ४०] चतुर्थीने बदले सप्तमी तथा पंचमीने बदले पण सप्तमी विभक्तिनो व्यवहार छे: " संपदाने च" [ सू० ४१] "पंचम्यत्थे च" [सू० ४२] ए ज प्रमाणे आचार्य हेमचंद्रना जणान्या प्रमाणे पण द्वितीयादि सप्तमी सुधीनी विभक्तिओने बदले षष्ठी वपराय छ : [ है० व्या० ८-३-१३४ ] द्वितीया अने तृतीयाने बदले सप्तमी वपराय छे : [ है० व्या० ८-३-१३५] क्यांय पंचमीने स्थाने तृतीया अने सप्तमी वपराय छे: [है० व्या० ८-३-१३६] सप्तमीने बदले द्वितीया अने तृतीया वपराय छे अने क्यांय प्रथमाने बदले द्वितीया वपराय छ : [ है० व्या० ८-३-१३७ ] ए ज रीते उभय भाषामां एकवचनने स्थाने बहुवचन अने बहुवचनने स्थाने एकवचन वपराय छे. [७] व्यापक प्राकृतमां शब्दनो अन्त्य व्यंजन लोप पामे छे
___ तेम वैदिक रूपोमां पण शब्दनो अन्त्य व्यंजन अंत्यव्यंजनलोप
लोपायेलो मळे छे.
वैदिक पश्चात् ने बदले पश्चा-पश्चार्ध
[ वै० प्र० ५-३-३३] उच्चात् , , उच्चा [तै० सं० २-३-१४]
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