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आमुख
दिद्युत् ,,,
युष्मा
ताव
वैदिक नीचात् ने बदले नीचा [तै० सं० १-२-१४]
दिद्यु [" अन्त्यलोपः छान्दसः"
__ भाष्य. ऋ० वे० पृ०
४६६ म० सं०] युष्मान् ,,,
[वा० सं०१-१३-१।
शत० ब्रा० १-२-९] स्यः ,"
स्य
[ वै० प्र० ६-१-१३३ ]
व्यापक प्राकृत तावत् ," यावत् ,,,
जाव कर्मन् ,, ,
कम्म [८] व्यापक प्राकृतमा 'स्प' ने बदले 'प' बोलाय छे, तेम
वैदिक रूपमां पण 'स्प' ने बदले 'प' वपरायेलो छे.
वैदिक ‘स्पृशन्य' ने बदले 'पृशन्य'
[ऋ० वे० पृ० ४६६ म० सं०]
व्यापक प्राकृत 'स्पृहा' ,, ,, 'पिहा'
[९] व्यापक प्राकृतमां अने वैदिक प्रयोगोमां संयुक्त 'र' कार 'र' नो लोप लोप पामे छे.
व्या० प्रा० 'अप्रगल्भ' नुं अपगल्भ [तै० सं० ४-५-६-१] अपगब्भ
स्प-प
वैदिक
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