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४० वेदोमां वपरायेला पदो अने पाणिनिए दर्शविले ते पदोनुं बंधारण तथा व्यापक प्राकृतना साहित्यमां वपरायेलां पदो अने कच्चायण, चंड तथा हेमचंद्र वगेरेए दर्शावेलं व्यापक प्राकृतनुं बंधारण, ए उभय बंधारणनी तुलनात्मक समीक्षा करतां ए तद्दन स्पष्ट जणाई आवे छे के जीवती एवी वैदिक भाषानो वारसो व्यापक प्राकृतभाषाए साचवी राख्यो छे. एटले एम कहेतुं जराय वधारे पडतुं नथी के वैदिक, भाषाना जीवंत स्रोत साथे व्यापक प्राकृतनो गाढ संबंध छे.
जीवती वैदिक भाषानो वारसो व्यापक प्राकृतमां छे
४१ आ संबंध बतावनाएं केटलांक उदाहरणो आ प्रमाणे छे : [१] वैदिक प्रक्रियामां बहुलं छन्दसि "
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२-४-३९ ॥ " बहुलं छन्दसि " २-४-७३ । आ प्रकाबाहुल्य रना अनेक सूत्रो आवे छे. तेनो अर्थ ए छे के वैदिक रूपोमां सर्वत्र बहुलाधिकार प्रवर्ते छे त्यारे व्यापक प्राकृतमां तेना समग्र बंधारणमां बहुलाधिकार प्रवर्ते छे. ए, “ क्वचि लोपं " [ संधिकप्प कांड ४ सू० ९] "जिनवचनयुत्तम्हि " [नामकप्प कांड १ सू० १] तथा “ बहुलम् ” [ ८-१-२] “ आर्षम् ” [८-१-३] एवां सूत्रो रचीने कैचायण अने हेमचन्द्रादि वैयाकरणोए स्पष्टपणे बतावेलुं छे. लौकिक संस्कृतमा उक्त बहुलाधिकार तद्दन विरल छे.
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[२] लौकिक संस्कृतमां अमुक धातुओ प्रथम गणना धातुओमां गणभेद अमुक बीजा गणना अने अमुक त्रीजा गणना, नथी ए रीते धातुओना दश विभाग करवामां आव्या छे, अने ए विभाग प्रमाणे प्रथमगणना धातुओने विकरण प्रत्यय अ ' लागे छे. बीजा, त्रीजा गणना धातुओने विकरण.
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४९ जुओ कच्चायणनुं पालिव्य
विद्याभूषण
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