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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
[४] लौकिक संस्कृतनी घटनाना प्रमुख पुरुष महाभाष्यकार कहे छे के शब्दो करतां अपशब्दो घणा छे अने ए बधा अपशब्दोने 'अपभ्रंश' ना नामे तेओ ओळखावे छे, तो जे शब्ददेह 'अपभ्रंश' नामे तेओए ओळखावेलो छे ते शब्ददेह वैदिक भाषानो न हतो तेम लौकिक संस्कृतनो पण न हतो, त्यारे ए शब्ददेहने कई भाषानो समझवो ? मारा नम्र कथन मुजब ए शब्ददेह जे भाषानो हतो ते भाषाने ज अहीं व्यापक प्राकृतनुं नाम आप्युं छे. अने तेनो प्रादुर्भाव जीवंत वैदिक संस्कृत द्वारा जणाव्यो छे.
[५] लौकिक संस्कृतनी घटनाने समये आर्योनी मूळभाषा मूळरूपे तो रही ज न हती, रही होत तो भाष्यकार पोते 'एक शब्दना अनेक अपभ्रंशो छे' एम शामाटे कहेत ? तेमणे जे अनेक अपभ्रंशो बताव्या छे ते आव्या क्याथी ? ए बधा य अपभ्रंशो आदिम जातिओनी भाषामांथी आव्या छे, एम तो केम कही शकाय ? एटले ते बधा अपभ्रंशो जे भाषामांथी ऊतर्या छे ते आर्योनी मूळभाषा हती अने ते ज भाषा व्यापक प्राकृतना प्रादुर्भावमां असाधारण कारण छे एम कहेवामां जराय असंगति नथी. ३९ ते ते आदिम जातिओनी भाषानो प्रभाव लौकिक संस्कृत ऊपर
पण पड्यो छे छतां जेम लौकिक संस्कृतनुं मूळ
स्रोत वैदिक भाषामां छे तेम आदिम जातिओनी ऊपर पण आदिम जातिओनी भाषानो भाषाथी प्रभावित थयेली व्यापक प्राकृतनुं मूळ
प्रभाव स्रोत पण ते ज आदिम वैदिक भाषामां छे.
४७ “एकैकस्य शब्दस्य बहवः अपभ्रंशाः, तद्यथा-'गौः' इत्यस्य शब्दस्य गावी, गोणी, गोता, गोपोतलिका-आदयः अपभ्रंशाः”—(महाभाष्य पृ० ११ वा० स०)
४८ जुओ ऊपरतुं टिप्पण.
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