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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
३४ कहेवानुं तात्पर्य ए छे के मूळ जीवती भाषामां आर्योनां विविध
उच्चारणोनो उद्भव थयो अने तेमनो अनेक आदिम व्यापक
जातिओ साथे गाढ संपर्क थयो एथी एक एवी प्राकृतनो
नवा जेवी बीजी सर्व जनसाधारण भाषा नीपजी उद्भव
गई के जे आर्योनी न कहेवाय तेम आदिम जातिओनी पण न कहेवाय पण 'व्यापक प्राकृत' ना नामे संबोधी शकाय.
३५ 'प्राकृत' शब्द मनुष्यना विशेषणरूपे वपराय छे तेम भाषाना
नाम माटे पण वपराय छे. नागरिक लोको जे जे ना प्रवृत्तिओने संस्काररूपे माने छे ते बधी प्रवृत्तिओ अर्थ
- विनानो मनुष्य ' प्राकृत मनुष्य' कहेवाय छे. प्राकृत मनुष्यमा स्वभावनी स्थिरता होय छे, ते प्रकृतिने अनुसरे छे, बनावटी उपायो द्वारा पोतानी स्थितिने फेरवतो नथी, प्रकृति माता तेने जे रीते राखे छे-पोषे छे ते रीते ते वर्ते छे अने वधे छे. जे लोको प्राकृत नथी एटले प्राकृत मानवथी विरुद्ध प्रकारना छे-नागरिक छे तेओ प्रकृति प्रमाणे चालता नथी, एवा लोको पोता ऊपर अनेक प्रकारना बनावटी उपायो द्वारा विविध संस्कारोने लादे छे–पोते दूषणरूप मानेलं प्राकृतपणुं दूर करवा सतत प्रयत्न सेवे छे अने ए रीते मूळे प्राकृत छतां पछी संस्कृत-संस्कारसंपन्न बने छे.
चालु भाषामां कहीए तो ‘गामडियु' 'गामठी' 'देशी' 'तळपदुं' अने 'प्राकृत' ए बधा पर्यायवाचक शब्दो छे. आ विशेषणवाचक 'प्राकृत' 'शब्द' 'प्रकृति' साथे संबंधित छे तेम भाषावाचक 'प्राकृत' शब्द पण 'प्रकृति' साथे ज संबंधित छे. प्रकृति एटले स्वभाव-अकृत्रिमता
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