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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
पण वपरावा मांड्यो छे. आ रीते आ सैकामां गुजरातीनी मोटी माशी प्राकृतनी असर ओछी थवा लागी छे. अने समृद्ध एवी नानी माशी संस्कृतनी असर ठीक प्रमाणमां जणावा लागी छे.
२०५ पन्दरमा सैकानी गुजराती भाषामां चौदमा सैकानी जे संस्कृतजन्य विशेषता हती ते, वधारे प्रमाणमां कळावा लागी छे. 'औ' स्वरनो प्रयोग पन्दरमा सैकानी गुजरातीमां थवो शरू थयो छे अंतिम 'अइ' वगेरे स्वरोनो गुण करीने पन्दरमा सैकानी भाषा बोलीए तो ते अद्यतन गुजराती जेवी जणाया विना रहेती नथी. आ सैकाथी षष्ठी विभक्तिना ' रहई' वगेरे प्रत्ययो नवा ज शरू थया छे, जो के तेमनुं मूळ, तेनी माता अपभ्रंशमां रहेलुं छे ज. पन्दरमा सैका पहेलांनी गुजरातीमां सर्वत्र
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कहइ ', ' करइ' एवां ' छइ' विनानां ज क्रियापदो वपरातां हतां ते ea आ सैकाथी ' छइं' वाळां वपरावां लाग्या छे अने ए पद्धति ठेठ आज सुधी चाली आवी छे. पन्दरमा सैकाथी जैन अने वैदिक बन्ने कविओनी कृतिओनो उपयोग करेलो छे. अने तेमां य जैन करतां वैदिक कविओनी कृतिओनो वधारे उपयोग छे.
२०६ सोळमा सैकानी गुजरातीमां आद्य 'ज' ने बदले 'य' नुं उच्चारण थयेलुं मालूम पडे छे. हवे अहीं ' अइ' वगैरे लगभग संयुक्त थयेला वपरावा लाग्या छे. 'जेहूनुं' 'ताहरूं' वगेरे प्रयोगोमां 'हू' श्रुति संभळावा लागी छे अने सप्तमीविभक्तिवाळां नामो जेवां के ' आसनि ' ' गामि' वगेरेने बदले ' आसन्य ' ' गाम्य' एवा ' य 'कारवाळा प्रयोगों पण वपरावा लाग्या छे, तथा जे नाम, छेडे 'इ' वाळु छे जेमके हरि, रात्रि, प्रीति एनो अंत्य 'इ' 'य'रूपे बदलाईने वपरायेलो छे, एटले हर्य, रात्य, प्रीत्य एवा प्रयोगो थयेला छे. आवा प्रयोगो वाग्व्यापारजन्य विलक्षणताना पुरावारूप छे, ए स्पष्ट छे.
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