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उपसंहार
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नमूना रूपे जणावेलां छे. तेमनी कृतिमां बीजां तो आवां अनेक पद्यो तेमणे अवतरणो रूपे मूकेलां छे. तेरमी सदीनी गुजरातीभाषानो ख्याल आप्या पछी चौदमी सदीनी कृतिओना लीधेला नमूनामांथी शब्दो-नामो क्रियापदो वगेरे जणाव्यु छे अने तेरमा करतां चौदमी सदीनी भाषामां शी विशेषता आवी छे तथा चालु गुजरातीनी साथे ते केटला वधारे प्रमाणमां भळी जाय एवी बनेली छे ते बधुं वीगतथी बताव्युं छे. साथे साथे बारमी, तेरमी अने चौदमी सदीनी गुजरातीभाषानां नाम-विभक्तिओ, क्रियापदविभक्तिओ, कृदंतो वगैरे विशे पण लांबुं विवेचन करेलु छे अने वच्चे बच्चे व्युत्पत्तिसंबंधी केटलीक चर्चाने पण छेड्या सिवाय रही शक्यो नथी, बारमा अने तेरमा सैका करतां चौदमा सैकानी गुजरातीमां विशेष फेरफार थयेलो छे अने तेनुं वलण वधारे प्रमाणमां नवी गुजरातीने मळतुं थवा मांड्युं छे.
२०४ अत्यार सुधी जेमनो प्रयोग न हतो एवा विजातीय संयुक्त अक्षरो क्ष, क्त, व्य, त्य, र्य, ष्ट, ष्ट, द्ध, र्ग, श्य, न्य, ध्य, म्य, ख्य, ल्य, क्तव, त, , म, स्थ वगेरे व्यंजनो चौदमा सैकानी गुजरातीमां वपरावा मांड्या छे. संस्कृतभाषानो प्रभाव जोतां अने तळपदां उच्चारणो विशेष अशुद्ध भासतां तत्कालीन लेखकोए क्लिष्ट छतां शुद्धिपोषक होई ए संयुक्त व्यंजनोनो वापर स्वीकार्यों होय एवो भास थाय छे. आ समय पछी उत्तरोत्तर विजातीय संयुक्ताक्षरोवाळा शब्दो खूब वधता गया छे. पहेलां जे श, ष, स त्रणेने बदले एकलो 'स' ज वपरातो हतो ते हवे बंध थयो अने यथास्थान श, ष अने स ए त्रणे चौदमा सैकानी गुजरातीमां वपरावा लाग्या छे. अंत्य एवा, अइ, अउ, वगेरे भेगा पण थवा लाग्या छे अने गद्यनी भाषामां तळपदापणुं वधतुं चाल्युं छे. अत्यार सुधी 'ऐ' ने बदले 'अइ' के 'अय' वपराता ते बंध थई चौदमा सैकामां 'ऐ'
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