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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति ।
२०३ तेरमा सैकानी भाषाने समझवा पण ठीक ठीक सामग्री मूकेली छे. तेरमा सैकानी भाषामां अने बारमा सैकानी भाषामां नहींवत् अंतर छे छतां प्रमाणमां तेरमा सैकानी भाषामा प्राकृतपणुं ओछं देखाय छे. नामना अने क्रियापदना देहनी रचना आपणी अद्यतन गुजरातीना वलणवाळी छे. सोमप्रभनी रचना करतां धर्मसूरिना जंबूचरियमां अने विजयसेनसूरिना रेवंतगिरिरासमां आपणुं आधुनिक वलण वधारे स्पष्ट छे. सोमप्रमे जणावेलां आ पांच पद्यो पण तेमना समयनी लोकभाषानो–चालु गुजरातीनो-ख्याल आपवाने पूरतां छे :
खड्ड खणाविय सई छगल, सई आरोविय रुक्ख । पई जि पवत्तिय जन्न सइं, किं बुब्बुयहि मुरुक्ख ॥ १ ॥ तीयह तिन्नि पियाराई, कलि-कज्जलु-सिंदूरु । अन्नइ तिन्नि पियाराई, दुद्ध जम्वाइउ तूर ॥ २ ॥ अह कोइलकुलरवमुहुलु भुवणि वसंतु पयट्ट । भट्ट व मयणमहानिवह पयडिअविजयमर? ॥ ३ ॥ वडरुक्खह दाहिणदिसिहिं जाइ विदन्भिहि मग्गु। वामदिसिहि पुण कोसलिहि जहिं रुच्चइ तहिं लग्गु ॥ ४ ॥ पिया हउँ थक्किय सयल दिणु तुह विरहग्गि किलंत । थोडइ जलि जिम मच्छलिय तल्लोविल्लि करंत ॥ ५ ॥
___ (कुमारपालप्रतिबोध पृ० २५-३२-३८-५७-८६) सोमप्रभनी कृतिनो नमूनो अने तेमांना शब्दो वगेरे आगळ बतावी गयो छु. तो पण तेमना समयनी प्रचलित गुजरातीनो विशेष स्पष्ट ख्याल आवे ते माटे अहीं फरीवार तेमणे अवतरणरूपे जणावेलां उक्त पांच पद्यो फक्त
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