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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
शब्द छे. आर्यो ते शब्दने अकारांत 'चोर' बनावीने वापरे छे. द्रविड भाषानो लकारांत ' माल्' छे तेने आर्यो ' मला ' करीने बोले छे. द्रविड भाषाना 'सर्प' अर्थना पकारांत
'पापू' शब्दनो आर्यों
6 पाप ' एवो बोल तेने 'पाप' कहेवो योग्य छे
द्रविड भाषानो ' अतर् '
(
बनावे छे अने ' सर्प' पापरूप छे माटे एम कहीने 'पाप' नुं निर्वचन पण करे छे. शब्द ' मार्ग' अर्थनो छे तेने आर्यो ' अतर ' बोले छे अने जे 'दुस्तर' छे ते ' अतर ' कहेवाय एम कहीने आर्यो द्रविड भाषाना ए अतर् ' शब्दने आर्यप्रसिद्ध ‘तृ–तरतुं' धातुमांथी नीपजावे छे. द्रविडलोकोमां वैरं'' शब्द 'पेट'ना अर्थमां प्रसिद्ध छे. आर्य लोकोमां 'वैरी ' ' शत्रु 'ना अर्थमां जाणीतो छे. आर्यो कहे छे के 'पेट' माणसपासे अकार्य करावे छे माटे ते शत्रु जेवुं छे- आ रीते ' वैरी' अने द्रविड ' वैर् ' वच्चे साम्य साधी आर्यो 'वैर्' ने पण 'पेट' अर्थमां वापरे छे. "
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शब्द
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द्रविडी पदोनां एवां उदाहरणो
" आ प्रकारे आर्यलोको विजातीय भाषाना अनेक शब्दोने पोतानी ते फेरवीने काममा ले छे. "
३५ स्त्रीवाचक 'महिला' के 'महेला ' पद साधे प्रस्तुत 'माला' पदनी तुलना संभवे छे.
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३६ वर्तमानमां पण द्रविडी भाषामा 'पेट' अर्थे 'बैर्' शब्द सुप्रतीत छे, हकीकत एक द्रविडी मित्र पासेथी जाणी छे. संस्कृत कोशमां पण ' बेर' शब्द 'शरीर' ना पर्याय तरीके नोंधेलो छे. 'वेर - संहनन - देह - संचराः " ( है मकोश कांड ३, श्लो० २२७. ) अने
'कुबेर' एटले जेनुं बेर- शरीर, कु-कद्रूपुं छे ते एवो अर्थ करीने 'कुबेर' नी व्युत्पत्ति आपता कोशकारे तेमां पण 'बेर' पद ने शरीरवाचक कयुं छे. 'कुत्सितं बेरम् - शरीरम् - अस्य कुष्ठित्वात् कुबेरः " - ( हैमकोश कांड २, श्लो० १०३ )
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