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सोळमा अने सत्तरमा सैकानुं पद्य तथा गद्य ६०१ मध्याह्न आश्रम सूना थाइ ऋषिजी नितिकर्म करवा जाइ । शालवतणी सुता सुंदरी जिद्रथनई कन्या ते वरी ॥ ५ ॥ लग्न केरु ते दिन आविउ जिद्रथनई संदेशु काविउ । परणेवा पधारज्यो तम्यो आंहि सामग्री कीधी अम्यो ॥६॥ जिद्रथि जान शणगारी बहु हय गज रथ ते लीधा बहु । भेरी मृदंग वाजइ घणी साथि................तणी ॥ ७ ॥ स्त्रीजन रथ मांहि गान करइ एणी पिरि जिद्रथ परवरइ । दुत-कामिकनी वाटे जाइ नीसाणना निर्घोष वगडाइ ॥ ८ ॥ तेणइ समि वनमांहि द्रुपदी एकली मनमांहि वदी। दुंदुभिनाद बहु सांभली स्त्रीनां गान सुणी मनि रली ॥९॥ कोइक राजा वरवा जाइ ते जोवा केरूं मन थाइ । पर्णकुटी ऊघाडी करी द्रुपदी जोवा ते नीसरी ॥ १० ॥ ऊपरि ऊपरि जोइ चढी जिद्रथ केरी दृष्टिइं पडी। तव प्रधाननई पूछ्यू भूपि ए स्त्री कुण दीसि तेजस्वरूप ॥ ११ ॥ सूरज्यकोटि दीसि झात्कार एवी जानमां नथी कुहु नारि । कोटरास परधान किहिवाइ तेनि पूछवा मूकिउ राई ॥ १२ ॥ जाउ मित्र आवु पूछी वात कुहुनी कामिनी कुण मा–तात । तिहारि प्रधान पूछवा गयु द्रुपदी आगलि ऊभु रा ॥ १३ ॥ परधाने जै कयूं कामिनी ते मुहुनई किहि तूं भामिनी । परधान केवु सोभइ त्यांहि बावल वृक्ष ऊभु वनमांहि ॥ १४ ॥ एड्वी ऊभी द्रुपदनी बाल सिंहनी नारी पूछि शिआल | तिहारि द्रुपदी बोली वाणि पांडवपत्नी मुहुनई जाणि ॥ १५ ॥
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