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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
जनमेजे राइ ऊच्चरइ ते जल नयण) झरइ । राइ कहइ वैशंपायन मुहुनई कुहु रे ॥ १॥ वैशंपायन मुहुनई कुहु एक संदेह मोटु आपि । धौम्य ऋषिनई किहां थकु ए कश्यपसुत तणु जाप ॥ २ ॥ सद्य प्रभाकर प्रगटिउ अनई आपिऊ वरदान । मूल मंत्र ज किहां थकु किम पाम्या परमनिधान ॥३॥ वैशंपायन वलतूं वदइ उत्तर सांभलु राइ । एक समइ इच्छा थई स्वर्ग मांहि सुरराइ ॥ ४ ॥ सूरजनूं एक स्तोत्र कीबूं नाम शत ऊपरि अष्ट । अंतर्गति आराधतां सविता थया संतुष्ट ॥ ५ ॥ आवीनई ऊभा रह्या आपिऊ वरदान । आ वैभव ताहरु अचल रिहिज्यो इम कही थया अंतर्धान ॥६॥ एहवइ ऋषिजी आविआ करि वीणा हरिगुणगान । आसन आपी अरचिआ नई स्तवइ सुरराजान ॥ ७॥
(पृ० ३०) जनमेजे वलि पूछइ वात वैशंपायन कुहु साक्षात । एकमास ए अंतरि रहुं ते पांडवे किम निर्वा ॥१॥ तेह्मां विघ्न थयां जे यथा तेनी मुहुनई कुहुनई कथा । वैशंपायन किहि सुणि राइ ! एक मासमां विघ्न बि थाइ ॥२॥ सुखसमरिधि वनमांहि रमइ एकवार एह्वु आव्यु समइ । मृगया रमवा वनमां गया पांचे भाइ जूजुआ थया ॥ ३ ॥ त्रणि दिशाई तेह परवर्या निकुल सिहिदे एकठा पल्या । इम ते वनमां पांचे भाइ तेह समइ सांभलिनइं राइ ॥ ४ ॥
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