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सोळमा अने सत्तरमा सैकानुं पद्य तथा गद्य
यथासंपदा जेहून जेवी तेहूनई तेवूं दान | राजानई तां राजरीतिइ रंकनई [ रंकसमान ] ॥ १२ ॥ पणि रत्नमणि कनकभूषण देतां अन्न अवारि । विमुख को वालि नहीं पछर्इं लिहिवु आहार ॥ १३ ॥ तो हि आशा माटि थयूं अनई विपत आवी आज । गम्यं श्रीगोविंदनई जे द्वारिकां तणु राज ॥ १४ ॥
मई पाप पूर्वे शां कर्यं लूंस्या कणकोठार | अतिथि को आविउ आंगणइ तेहूनई नापिउ आहार ॥ १५ ॥
दुर्बलनी मई भूख न लही अन्नकाजि करिउ नाकार | याचकजन मई दुहुविआं तेनई मुखि करिउ तिरस्कार ॥ १६ ॥
पाक पूरण नीपना हूं ज्यमित्रा बइठु ज्येष्ठ ।
अन्नकाजि उवेखिआं मई पोतई पोप्यूं पेट ॥ १७ ॥
अंतर मई एहवुं करिउ ते आडूं आयूं पाप । ऋषि ! तहमनई मूकी हूं व्यमूं तु भोगवूं किहां आप ।। १८ ।।
निःश्वास मूकी ऊठिआ नई गया जिहां गुरु धौम्य । वृत्तांत सर्व मांडी कह्यं एकांति बइशी भोभि ॥ १९ ॥ मुहुई राइ जाणी आविआ मोटा जे द्विजराज । नाकार मुखि नवि कहूं देह प्राण थाइ त्याज ॥ २० ॥ तव धौम्य कहइ छइ धर्मनई चिंता म करशु चिंति । विपत सघली भांजशि कहूं ऊपरि दृष्टांत ॥ २१ ॥
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