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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
जूनां धान हुइ बलहीण तिणि करी देह थाइ खीण । असी वात राउल जे भणइ बीजि दिवसि महाजन सुणइ ॥ १२३ ॥ राजंगणि सवि ग्या संचरी पहिल सवि सहू मेलु करी । जई रा लगुनि भेटणं करूं मोती भरिउ थाल ते धरु ॥ १२४ ॥ वीवहारीया राय वीनवइ अह्मो आलहिणूं करिसूं सवइ । करयो वेढि, म छंडु मान वरस साठि पूरीसिंउ धान ॥ १२५ ॥ रामसींह फडीउ इम भणइ कण कोठार घणा अह्म तण । मग चोखा जब काठा गहुं पूरूं वरु जु आयस लहु ॥ १२६ ॥ वीरम भइ उधारु जीउ वरस त्रीस हूं पूरुं घीउ ।
मागूं सीख पसाय अझ कर भुंजाइइ बिमणउं वावरु ॥ १२७॥ जइसी दोसी इम भइ वस्त्र वखारि घणी अतणइ । लेवा तणी म करसिउ माठि कापड हूं पूरूं वरस साठि ॥ १२८ ॥ भोलु साह भइ लिउ तेल असी वरस पूरुं दीवेल । बाले एलु छइ पारु वलते वारे नाहणं करु ॥ १२९ ॥ राय भइ महाजन परि कही कोरुं धान जिमाइ नहीं । जमलि साखि दीइ परधान ईंधण विण नवि पाचइ धान ॥१३०॥ मोहणसाह कहर ए परि वात एतली छड् पाधरी ।
सूकडी अगर अह्मारइ घणां वरस साठि पूरुं ईंधणां ॥ १३१ ॥ राय भणइ ई साचूं सही पाखइ गोल न सकीइ रही । भीमु साह ईणी परि भणइ देउल मन भाजु आपणइ ॥ १३२ ॥ वरस अढार लगइ त्रापडा गुल ढीकलीइ पूरूं गडा |
तेह पारखूं जोउ राय गुलनु गोलु बिमणु जाय ॥ १३३॥
( पृ० ८२ )
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