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सोळमा अने सत्तरमा सैकानुं पद्य तथा गद्य ५७५ सेजवाल काढि कारण करी पापी पापबुद्धि आदरी । लोभि एक विटालि आप लोभि एक करि घण पाप ॥१८३॥ लोभि एक नर लोपि धर्म लोभि करइ पाडूंआं कर्म । लोभि मिली माल आथडइ लोभि एक नर वाहणि चडइ ॥१८४॥ लोभि एक विदेसि वलइ लोभि एक नर पाला पलइ । लोभि एक दाखवि अणाथि लोभि बूटां बालि हाथि ॥ १८५॥ लोभि एक फरि दारिद्र लोभि चोर न आवि निद्र । लोभि काजि पीयारि मरइ लोभि कन्याविक्रय करइ ॥१८६॥ लोभी जमलु वासि म वसे लोभि एक सेडि सांडसे । लोभि एक थाइ अन्यान लोभि एक पडावि बान ॥ १८७॥ लोभि धर्म लोप आदरइ लोभि सगां सहोदर मरइ । लोभि एक नर पाडइ वाट मारइ विप्र नगारी भाट ॥ १८८॥ लोभि एक नर छंडि मान नीच तणि घरि खाइ धान । लोभि एक तणूं मन राखि लोभि एक दीइ कूडी साखि ॥१८९॥
(पृ० ८९)
डुंगरतणां शिखर डगमगइ थ्यु अजूआलु साचुरि लगइ दिग्गज आठ रहीया अवलोकि धुम विराल गई सुरलोकि ॥२४२॥ जाणी वात न लाई खेव ततखिणि जोवा आव्या देव । हस्ति चडिउ एरावत इन्द्र अंतरिखइ सूरज नइ चन्द्र ॥ २४३ ॥ नैऋत वरुण सवि सुर मिली नरवाहन तिहां आविउ वली । तिहां चुसठि योगिणी हती हंसि चडी आवी सरसती ॥ २४४ ॥
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