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सोळमा अने सत्तरमा सैकानुं पद्य तथा गद्य ५७३ जिणि जमुनाजलि गाहीऊ जिणि नाथीउ भुयङ्ग । वासुदेव धुरि वीनवू जिम पा{ मन रङ्ग ॥३॥ पद्मनाभ पण्डित सुकवि वाणी वचन सुरङ्ग । कीरति सोनगिरा तणी तिणि उच्चरी सुचङ्ग ॥ ४ ॥ जालहुर जगि जाणइ सामतसी सुत जेह । तास तणा गुण वर्णवू कीरति कान्हडदेह ॥ ५॥
(पृ० १)
तिणि अवसरि गूजरधर राइ सारङ्गदे नामि बोलाइ । तिणि अवगणिउ माधव बम्भ तांहि लगइ विग्रह आरम्भ ॥ १३ ॥ रीसावीउ मूलगु प्रधान करी प्रतिज्ञा नीम्युं धान । गूजरातिनूं भोजन करूं जु तुरकाणूं आणूं अरहूं ॥ १४ ॥ माधव महितइ करिउ अधर्म नवि छूटीइ आगिलां कर्म । जिहां पूजीइ सालिग्राम जिहां जपीइ हरिनूं नाम ॥ १५ ॥ जिणि देसि कीजइ जाग जिहां विप्रनइ दीजइ त्याग । जिहां तुलसी पीपल पूजीइ वेद पुराण धर्म बूझीइ ॥ १६ ॥ जिणि देसि सहू तीरथ जाइ स्मृति पुराण मानीइ गाइ । नवखण्डे अपकीरति कही माधवि म्लेच्छ आणिया तहिं ॥१७॥
(पृ० २)
मन्त्र महोषधी देवता अनुदिनि पूरि ऋद्धि । पद्मनाभ पंडित भणइ पुण्यतणी परसिद्धि ॥ १२२ ।।
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