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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
दामोदरें कीधी दया मुगट सहित मुनि आप्यो हार । बाजूबंध बिहिरखा आप्या त्रिभुवन वरत्यो जेजेकार । ध्रुव । राजा ! तूं गिहिलो थयो छां खड्ग लेइनिं आव्यो सङ्गय । जे वाहलाश्रू रङ्गभरि रमतां ते गोपालजीआं राख्यो रङ्ग दामो० ॥ १॥ एह वात साचूं जाणो हृदय आणो दृढ विश्वास । नरसैंआचो स्वाम्य भलिं मिलिओ सफल मनोरथ पुहुती आश दामो० २
संवत पन्नर बारोतर सपतमी अने सोमवार रे । मार्गशीर्ष-अजुआलि पखे [आ] नरसिंनि आप्यो हार रे ॥१॥ पचाश पद निर्मल गायां ते वैष्णव सुखे सुणाइ रे । अगम अगोचर अधात्म तेहनां पातिक सघलां जाइ रे॥२॥ जे जन भाव धरीनिं सांभलि ते नर निर्मल थाइ रे । भणि नरसैंओ हरि-पद पामे निश्चे वैकुण्ठि जाइ रे ॥ ३ ॥
कवि-पद्मनाभ-संवत् १५१२ कान्हडदेप्रबंध (संपादक स० डाह्याभाई देरासरी)
दुहा गौरीनंदन वीनवू ब्रह्मसुता सरसत्ति । सरस बन्ध प्राकृत कवू दिउ मुझ निर्मल मत्ति ॥१॥ आदि पुरुष अवतार धुरि यादवकुलि जयवंत । असुरवंस निकन्दीउ ते प्रण श्रीकन्त ॥२॥
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