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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति नरसिंह महेतो 'अमची' 'तमची' प्रयोगो वापरे छे. प्रा० · अम्हेचय'नी प्रतिकृति · अमची' अने प्रा० 'तुम्हेच्चय'नी प्रतिकृति ‘तमची' छे. एनी उपपत्ति विशे आगळ कहेवाई गयुं छे. 'होइला' अने गैला' प्रयोगो भासे छे मराठी जेवा, पण गुजरातीमां तेवा प्रयोगो प्रचलित छे. 'होएलुं' अने ‘गएलुं' ए प्रयोगो सर्वविदित छे. तेवा ज बीजा करेलु, भणेलं, जागेलं, पीधेलु, खाधेलुं वगैरे. 'हूअ' अने ‘गअ' भूतकृदंतने स्वार्थिक 'इल्ल' प्रत्यय लगाडतां 'हूइल' के 'हूएल' अने 'गइल' के 'गएल्ल' एवां रूपो नीपजे छे. ए रूपो उक्त 'होइला' ‘गैला 'ना मूळमां छे. 'शुं होएलु', क्यां गएलो-गयलो-एवा प्रयोगो सुरत तरफ प्रचलित होवानो मने ख्याल छे.
अत्यार सुधी ‘ऊपरि' प्रयोग आवतो पण हवे ‘ओपरि' पण शरू थयो छे. ए बन्ने पदो जोडणीनी दृष्टिए शुद्ध छे. ___ 'जेहना' अने ‘येहनूं' एम आखा 'ह' वाळी अने अडधा 'ह'वाळी जोडणी पण उपलब्ध थवा लागी छे. __वळी, एक विलक्षणता एवी जणाय छे के आदि 'ज' ने बदले 'य'नुं उच्चारण भीम अने मांडण बन्नेमां मळे छे. 'य' नुं 'ज' उच्चारण तो विशेष विदित छे; परंतु 'ज' - 'य' उच्चारण तो अविदित जेतुं छे; माटे मने विलक्षण जेवू लागे छे. प्राचीन भाषाओमां मागधी भाषामां 'ज' ने बदले 'य' बोलाय छे. प्रा० जाति मा० यादि, प्रा० जहा मा० यधा, प्रा० जाणति मा० याणदि, (८-४-२९२ हैम० ). अत्यारे घणा लोको 'ह' ने बदले 'स' बोली शुद्ध बोलवानी कल्पना सेवे छे तेम कदाच 'ज' ने बदले 'य' नुं उच्चारण भीमे कर्यु होय अथवा ए प्रांतिक उच्चारण होय तो ना नहीं.
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