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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति २७ जे समयनी भाषाविशे आपणे चर्चा करिए छिए ते, आर्योनी प्रथमावस्थानो समय छे. तेवे समये आर्य प्रजानो निवास अमुक एक परिमित स्थान ऊपर हतो. एथी तेमनी वच्चे बोलाती जीवती भाषा काई चपटी वगाडतां ज परिणामांतरने न पामे.
आर्योनां विधविध उच्चारणो चालु होय अने तेने अंगे भाषामां परिणामांतरे य प्रसरतुं होय. आ क्रियानी चालु स्थितिमां ज्यारे आर्यो
विस्तरवा लाग्या-सिंधु पंचनद सरस्वती-दृषद्वती आर्योनो विस्तार अने गंगायमुनाने काठे थताक तेओ आखा आर्या
- वर्तमां फेलाया अने ठेठ दक्षिण सुधी पहोंची गया भाषानुं परिवर्तन
त्यारे तेमनी जे भाषा एक समये खास परिणामांतरथी मुक्त हती ते हवे तेवी ज न रही शकी. ज्यारे अन्य अन्य भाषाभाषी प्रजासाथे अनेक रीते गाढ संपर्क थाय त्यारे मूळ भाषा परिणामांतरने न पामे ए बने पण केम ? विजयवंत प्रजा ज्यां ज्यां पोतानो विजयझंडो फरकावे छे त्यां त्यां तेने
लोकप्रिय शासकनी रीते अनेक लोकोना गाढ संबंविजयी अने परा-धमां आववं ज पडे छे. पराजय पामेली प्रजा साथेना
जित प्रजाना - संपर्कथी भाषानुं
'! व्यवहारमा विजयी प्रजानो भाषाप्रवाह छूटथी वहेतो परिवर्तन होय छे एवे प्रसंगे विजयी प्रजानी अने पराजित
प्रजानी भाषा परिणामांतरने नपामे एम बने ज नहीं. विजयी प्रजा पोतानी मूळभाषाने लेश पण विकृत कर्या विना व्यवहार चलाववा जाय तो तेनो भाषाव्यवहार ज अटकी पडे, अने शासकनी स्थितिमां मूकायेली कोई पण प्रजा मात्र भाषाना मूळ देहनी रक्षा माटे पराजित लोकोसाथे भाषाव्यवहार ज न राखे ए तो तदन
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