SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आमुख ३३ व्याघ्र-वक्ख । राजा-राचा । पृष्ठ - पट्ठे-पिट्ट-पुट्ठे । गौरी-गउरी-गोरी । तृणतण-ति । दयितेन दयिएण- दइयिण-दइएं | देवस्य देवस्स- देवस्सु - देवसुदेवहो । तृणानाम्-तणाणं-तणहं । तरोः तरुहे । दत्त - दिण्ण-दिन्न । 1 आगळ जणावेला यास्क अने पाणिनिना शब्दसंग्रहमां अने आ शब्दोमां जे पहेलो शब्द छे तेने मूळरूपे कल्प्यो छे अने पछीना शब्दोने, ते मूळ शब्दना ज उच्चारणभेदथी नीपजेला कल्प्या छे. २६ अहीं जे स्थूल दृष्टिए जुए तेने तो एम ज भासे एवं छे के ते प्रथम शब्द अने ते पछीना बीजा बीजा शब्दो ते बधा एक बीजाथी तद्दन जुदा जुदा छे ज्यारे खरी रीते तेम नथी, किंतु जे जीवती भाषा उच्चारणभेदना सपाटामां आवे छे तेनुं घडतर ज आम थाय छे. सोनुं विशिष्ट निमित्तने लीधे पोतानी पूर्व आकृति कलशरूपतानो परित्याग करे छे अने अन्य आकृति - मुकुटरूपता - ने धारण करे छे. ए बनाव जेटलो सरळ अने गम्य छे स्थूल पदार्थना परिवर्तननी पेठे तेम कोई पण मूळभाषाना शब्ददेहमां परिवर्तनभाषादेहनुं परिवर्तन शीघ्र गम्य थतुं नथी परिणामांतर - थवानो बनाव एटलो सरल नयी अने गम्य पण नथी. अमुक काळे बधा लोको एक साथे कोई पण चालती भाषाने तजी दे अने तेने स्थाने बीजी तद्दन नवी भाषाने अपनावी ले एवो तर्क पण भाषाना परिणामांतर माटे घटतो नथी. केटलीक एवी प्रवृत्तिओ होय छे के जे लोकधारणाने अधीन रहने चाले छे त्यारे भाषाना परिणामांतरनी प्रवृत्ति तेथी ऊलटी छे. भाषामा तो जमीनमां वावेला बीजनी पेठे कालपरिपाकानुसार परिवर्तननी क्रिया निरंतर चाल्या ज करे छे. परिवर्तननी क्रिया ज एवी छे के जे जाण्ये अजाण्ये प्रवर्तमान रही परिणामांतरने नीपजावे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy