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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति घोरंधार अंधारं करइ दिनकरतणा किरण आवरइ । सेवालीउ चडावइ शीत केवीतणां कंपावइ चीत ।। ८८॥ सूलीभंजण भंजइ अंग जीणि दीठइ पायक हुइ पंग। अजउ अमउ बेहू भड भला उडीनइ शिरि तोलई शिला ॥ ८९ ।। इस्या वीर सूदानइ साथि बावनसरिसा आवइ बाथि । अणीधार नवि लागइ अंगि बीजइ झुझि न आवइ वंगि ।। ९० ॥ ऊभा भड लूंटी लिई लोह तीहं आगलि कुण जीपइ जोह। रायनइ हय मर हाथी बहू आघउ थिउ आराली सहू ।।९१॥ निवडनिहाय धरणि धमधमई बूंबारव गयणंगणि गमइ ।
हारवि नवि सूझइ सूर रणि विसर्या वाजइ रिणतूर ॥९२ ॥ मयमत्ता दंतूसल मोडि दीइं घाउ कडयडई करोडि । घोडेसिउं घाल्या असवार रथपायक नवि लाभइ पार ॥९३ ॥
x छप्पय
पुहुरि पहिल्लै विप्पराउ जागंतु लोइ । तां निसिभरि नारी मसाहाणि सूलीतलि रोइ । परिठवी पुट्ठ दया परदइ मर पत्तो । कामिणी पूछीय कज्ज कंध ऊधरिऊ भत्तो।। भोजन दियंतमिसि डायणी षाइ मांस मत्थइरि चडी। उत्तिम तिवार असि वावरी करि स चूडि तुट्टवि पडी ॥ २२ ॥ बीजइ पुहुरि प्रधानपुत्र बलवंत बइठ्ठौ । तां उल्हाणौ अगनि तेज दूरहिय दिवौ । पावककजि पहुतु प्रेत परवरियौ पष्षलि । विचि खीचड कलकलइ बद्ध बावीस कुमतलि।
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