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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
अडयल
आगि विरहि विलक्खौ पाणी लागी अंगि तिहां सप्पाणी। कज्जललग्ग दिह दुउ पाणी पीबूं पुरिसि पशूवरि पाणी ।। ८५ ॥ नर नवरंग सही सावुजल किं कारणि पशु जेम पीयौ जल ! नारी नरकरि लागौ कजल पीधि भीजइ भय भरइ न अंजल ॥ ८६ ॥
x एकि भणइ ऊतारउ लांव एक सेक दिवरावय पांव । एकि भणइ आलस मेल्हीइ एकी भणिइ मंडल मांडीइ ॥ १८ ॥ एकि भणिइ अम्ह हळूउ हाथ एकि भणइ दिउ कडूउ काथ। आपापणी कला सवि कहइ गुणीया अनइ वइद गहगहइ ॥ १९ ॥ गूजर वइद जिह्वारई हसिउ जाणे धरणि धनंतरि जिसिउ । दीठइ रूपि सरूप ओलषइ वैद अनेरा आलिइ झषई ॥ २० ॥ एहनइ अंगि अग्गलउ अनंग नरवर को दीठउ नवरंग । मूरतिइ मूरछा भाजिसिइ मिलिउ लोक देषी लाजसिइ ॥ २१ ॥
किरि हाकी ऊठि हनुमंत किरि कोपानलि चडिउ कृतांत । चडक्ड चउपट चालिउ इम किरि आविउ गुरु भारथ भीम ॥ १०॥ मोकलि बांह गाढा बलवंत मोकलि जे सूरा सामंत । मोकलि राउत रणि वाउला मोकलि जे आंगइ आउला ॥ १७ ॥ जिणिइ अरथिई न भाजइ भीड जिणिइ न टलइ परणी पीड । मागणमित्र काजि टालीइ ते संपत्ति सघली बालीइ ॥ २८ ॥ अरथिई सघला सीझई काज अरथिइं आपणां कीजइ राज । अरथिई सवि ढांकइ अखत्र वेची अरथ विछोडीसु मित्र ॥ २९ ।।
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