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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
अग्गर गय मंधारि अनइ नेउर झंकारीय |
अग्गइ सुकाम किय कामिनी अनइ वसंति निशि उज्जली । पुहु वच्छतणउ भ्रमरंगि ससि अनइ सुवर सुद्दा मिली ॥
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बंदिण तण बहिन क्षत्रिणि क्षित्रिणी मानइ भाइ भणी । ए नातरूं नवूं नही आज भाटभुवनि रहतां नही लाज ॥
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जिणि पाटणि पोढा प्रासाद मेरुशिखर सिउ वह विवाद | गरुउ गढ ऊंचा आवास किरि अहिणव दीसइ कविलास ॥ ६७ ॥ माहि महेस विष्णु न ब्रह्म सहू समचरइ कुलोचित धर्म | जिनशासन गाढउं गहगहइ जीवदया देषी मन हरइ ॥ ६८ ॥
दिनकर भगतितणउ अतिभाव अधिकउ परमेसरी प्रभाव । जे जोगिनि चउसठिनूं ठाम चउसठि चेटकनउं तिहि ठाम ॥६९॥ गणपतिक्षेत्रपालनी ख्याति दिवसपाहि रूडेरी राति ।
ठामि ठामि मंडल मंडाइ ठामि ठामि नितु गुणीया गाइ ॥ ७० ॥ ठामि ठामि ढोणां ढोइडं ठामि ठामि जोणां जोइइ ।
सातइ वसण संसालइ जेउ मांहि घणां छई माणस तेउ ॥ ७१ ॥ इकि लीला लक्ष्मी लेइ जाई भोला भमहि सान बीकाई । मणा न कामणमोहणतणी वरतई धूरत विद्या घणी ॥ ७२ ॥ वसई वासि छत्रीसई कुली माहि मोटा बहुत्तरि मंडली । चउरासी सूरा सामंत घ्यारि महाधर मंत्रि अनंत ॥ ७३ ॥ चउरासी चुहटानि जुगति वरणावरणतणी बहु विगति । उत्तिम मध्यम लोक अपार भामा भला न पामई पार ॥ ७४ ॥
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