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चौदमा अने पन्दरमा सैकानुं पद्य तथा गद्य ५२३
कुंडलीउ ततः मौक्तिकदाम छंदः। पउमिणि हस्तिनी चित्रणी वारा संखिणी सार किद्ध संगारा । रतिपतिरंगि मिलवि सहि रामा पिक्खवि सुदयवत्स वर कामा ।। जे कामनरिंदतणइ दलि सार गुडया मयमत्त पयोहर भार । जे हिलि सागिल्लि चलइ चमकंति ते सुद्दयवत्स सिउ रंगि रमंति । जे अद्वय दिट्ठ कि नट्ट कुरंगि जे उप्पम रेह सनेह सुचंगि । जे चंदनि अंगि गमंति ते सुद्दयवच्छि सिउ रंगि रमंति ॥ करइ निज मानिनि आणणि सोह जे जाण जुवाण तणइ मनि मोह। . जे पस्तित्ति उर न मंति ते सुद्दयवच्छि सिउ रंगि रमंति ॥ ठवइ उरि हार कि तारयश्रेणि दुलंति नितंब प्रलंबित वेणि । जे तारुणि आरुणि नित्त घुमंति ते सुइयवच्छि सिउ रंगि रमंति ।
छप्पय
हे सही कहि कुण कजि अज उल्हास अंगि बहु । कुंकुमि कजलि कणयकुसुमि सिंगार किद्ध मुह । भरीय सेसि सीमंत कंत कंदप्पराय करि । गुडी साहण मयमत्त नित्त सज्ज कि उप्परि । माणिसि निसि मयंक मधुरति मधुप पहु वत्सतणूउ मुझ मनि वसिउं। उल्हवण अनिल त कि तनुरयणि सुदयवत्समुख निहि जिसिउ ।।
छप्पय
अग्गइ अहरा रत्त अहिविलि विलासीय । अग्गइ लोयण लोल अनइ कन्नलिहिं कलासीय । अग्गइ सिहिण सुथोर अनइ हाराउलि भारीय ।
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