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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
पंचम खंड-- चुपई
सहित सुषासण आव्या तुरी ग्यु रा लगुनि सहु संचरी। भणि हंस अपराधी धरु सेठि सकुटंब सूली धरिउ ॥९॥ भणि वच्छ करमि दीजि दोस पिता मंत्रेई म धरसि रोस । लषिउ विधाता ते दिन तसिउ ऊपरि त्रणा कुहाडु कस्युं ॥१०॥ पुनरपि वछराज इम भणि निहालि हरिचंद चरित तइ सुणि । राम युधिष्टर चाल्या धर्म हंसराज नवि छूटा कर्म ॥ ११ ॥ ततषिण हंस विमासि हीइ वीरवचन केणी परि लोपीइ ।
राजरीति चित चाहि रंग मेहल्यु सेठि लेई सप्तांग ॥१२॥ कीधु बहू आलोच आवासि सुपिउ राजप्रधानह पासि । सकल सेन सहित चालीया पुर पहइठाण नगर ते गया ॥ १३ ॥ भेट्या मात तात परिवार तलीया तोरण वनरवालि छाबि सेसि भरी वछ काजि ॥ १४ ॥
भणता दोष दरिद्र तनि टलि भणि असाईत अफला फलि । भणि भणावि नित गुणि नवनधि आवि अंगणि ॥१७॥ संवत १४ चऊ चंद्रमुनि शंष वछहंसबर चरित असंघ । बावन वीरकथा रस लीउ एह पवाडु असाईत कहिउ ॥ १८ ॥
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