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________________ ५१६ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति यु देवी तव बुद्धि निधान हाकि मुनिकेसर प्रधान । नरहत्या तिकीधी घणी मुझ मढि म रहेसि पापिणी ।। ५३ ।। हंसाउली शब्द जव सुणी जाण्युं देवि कुपी मुझ भणी | करजोडीनि ऊभी रहि गतपूरव भव वीतक कहि ॥ ५४ ॥ देवि अवधारु मुझ वीनती पेलि भवि हूं पंषिणी हती । ईडा मेहला सेवन कीउ दव बलतउ तेणि वनि आवीउ ।। ५५ ।। मझ भरतारि साहस नवि कीउ अपति मेहलीनि ऊडी गयु । जातीसमरणि संभारु सो इ मारु पुरुष न मेलुं कोई ॥ ५६ ॥ x X द्वितीय खंड - मास दिवस मनि निस्यु धरु सयंवरतणी सजाई करु | कुयरितणा चरण प्रणमेवि चाल्यु चित्रक संबल लेवि ॥ ६३ ॥ चतुर्थ खंड राजा भणि सेठि मनि धरु विवहारीआ कहि ते करु । तारि चोर चलाव्यु जसि सेरीइ श्रावक मिलीया तिसि आपण पा माहि मचका करि महेसरी भलु छि सेठि । धोति कमाइ पहिरणि सरि सनान सहू तापस भणि ॥ २८ ॥ X X एक भणी मिथ्याती तजु आठ कर्म काई ऊपारजु । जो तारतणी मनहोर आइ उपाइ मेलावु चोर ॥ २९ ॥ कुंरि वषारि दीधी देठि बिठउ दीठउ सूमणसेठि । X X Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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