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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
यु देवी तव बुद्धि निधान हाकि मुनिकेसर प्रधान । नरहत्या तिकीधी घणी मुझ मढि म रहेसि पापिणी ।। ५३ ।।
हंसाउली शब्द जव सुणी जाण्युं देवि कुपी मुझ भणी | करजोडीनि ऊभी रहि गतपूरव भव वीतक कहि ॥ ५४ ॥
देवि अवधारु मुझ वीनती पेलि भवि हूं पंषिणी हती । ईडा मेहला सेवन कीउ दव बलतउ तेणि वनि आवीउ ।। ५५ ।।
मझ भरतारि साहस नवि कीउ अपति मेहलीनि ऊडी गयु । जातीसमरणि संभारु सो इ मारु पुरुष न मेलुं कोई ॥ ५६ ॥
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द्वितीय खंड -
मास दिवस मनि निस्यु धरु सयंवरतणी सजाई करु |
कुयरितणा चरण प्रणमेवि चाल्यु चित्रक संबल लेवि ॥ ६३ ॥
चतुर्थ खंड
राजा भणि सेठि मनि धरु विवहारीआ कहि ते करु । तारि चोर चलाव्यु जसि सेरीइ श्रावक मिलीया तिसि आपण पा माहि मचका करि महेसरी भलु छि सेठि । धोति कमाइ पहिरणि सरि सनान सहू तापस भणि ॥ २८ ॥
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एक भणी मिथ्याती तजु आठ कर्म काई ऊपारजु । जो तारतणी मनहोर आइ उपाइ मेलावु चोर ॥ २९ ॥ कुंरि वषारि दीधी देठि बिठउ दीठउ सूमणसेठि ।
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