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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति चउपई
यादवतणु वंश वरणवू । वचनरसनाटिकअभिनवु ।
एता उदभूत वीत कवीत । भणता गणता पसरि चीत ॥३॥ चउपई
सालिवाहन सुत उत्तम ठाइ राज करि तिहां नरवाहन राइ बावनवीरमाहि झूझार-लहुड्डु भाई शकतिकुमार । शखिरबद्ध दस सहस प्रासाद कनककलसधज नरवि नाद । गोदावरीइ निरमलनीर पुर पहिठाण वसि तिहां तीर ॥५॥ ब्राह्मण वेदशास्त्र अभ्यसि चारि वरण वरणांतरि वसि । बि सहस जिहां जिन थापीआ वीस सहस माहि व्यवहारीया॥६॥ उत्तम धवलहर पोलि पगार वास नगर नव जोअण बार चउरासी चउहट्टे वुहरीइ राइचा उसव बंदिणि दीइ ॥ ७॥ सांथ जात्र जूवटा घणा कलहट कोलाहल तेहतणां । एक चउषलीया कुडी घसि वेसहरि मंदिर वीससि ॥ ८ ॥ रूडी रूपि राजकूअरी त्रिणिसि साठि अंतेउरी। बहू वाराइत वानि घणि दासी त्रीस सहस तेहतणी ॥९॥ राजरुधि नवनधि नरमली चतुरंग सेन छत्रीसि कुली। बावनवीर सदा गहिगहि पणि त्रिपनमु न वि सासहि ॥ १०॥ तेणि पुरि पाटणि नयरनरिंद एक वार पुढिउ निरु नीद । थयुं प्रभात सुपनंतर होइ ऊगिउ सूर न जागि सोइ ॥११॥ गियु कणयापुर पाटणि ठाइ परणि कुंयरि कनकभ्रम राइ । हंसाउली कर ग्रहीउ जसि सपन प्रेम मनि लागु जसि ॥१२॥
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