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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति तोडि करंगुलि करुण सगग्गिरगिरपसरु जालंधरि व समीरिण मुद्ध थरहरीअ चिरु ॥ ६८ ॥ रुइवि खणद्धउ फुसवि नयण पुण वज्जरिउ खंभाइत्तह णामि पहिय तणु जजरिउ । तह अच्छड् महु णाहु विरहउल्हावयरु अहियकालु गम्मियउ ण आयउ णिद्दयरु ॥ १९॥
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संनेहडङ सवित्थरउ हउ कहणह असमत्थ भण प्रिय एकतु वलियडइ बे वि समाणइ हत्थ ॥ ८३ ।। संदेसडउ सवित्थरउ पर मई कहणु न जाइ । जो कालुंगुलिमूंदडउ सो बाहडी समाइ ॥ ८४ ॥ तुरिय णिअगमणु इच्छंतु तत्तक्खणे दोहिया सुणवि साहेइ सुविअक्खणे कहसु अह अहिउ जं किंपि जंपिव्वउ मग्गु अइदुग्गु मई मुंध ! जाइव्वउ ॥ ८५॥
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जिण हउं विरहकुहरि एव करि घल्लिआ अत्थलोहि अकयत्थि इकल्ली मिल्हीआ संदेसडउ सवित्थरु तुह उत्तावलउ पहिअ पिअ गाह क्यु तह डोमिलउ ॥ ९५ ॥
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