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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति जइ अत्थि णई गंगा तिअलोए णिच्चपयडियपहावा । वच्चइ सायरसमुहा ता सेससरी म वच्चंतु ? ॥ १३ ॥ जइ सरवरम्मि विमले सूरे उइयम्मि विअसिआ नलिणी। ता किं वाडिविलग्गा मा विअसउ तुंबिणी कह वि ? ॥ १४ ॥ जइ भरहभावछंदे नच्चइ नवरंगचंगिमा तरुणी । ता किं गामगहिली तालीसदे ण णच्चेइ ? ॥ १५ ॥ जइ बहुलदुद्धसंमिलिया य उल्ललइ तंदुला खीरी । ता कणकुक्कससहिआ रब्बडिया मा दडव्वडउ ? ॥ १६ ॥ जा जस्स कव्वसत्ती सा तेण अलजरेण भणियव्वा । जइ चउमुहेण भणियं ता सेसा मा भणिजंतु ॥ १७ ॥
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+ तं जि पहिउ पिक्खेविणु पियउक्कंखिरिय मंथर गय सरलाविअ उत्तावलि चलिअ तह मणहर चलंतिअ चंचलरवणि भरि छुड्डवि खिसीअ रसणावलि किंकणि गय पसरि ॥२७॥ गाहा तं निसुणेविणु रायमरालगइ चरणंगुट्टि धरत्ति सलजिर उल्लिहइ । तं पंथिउ कणयंगि तत्थ बोलाविअउ । कह जाइसि हिव पहिय कह व तुह आइअउ ॥ ४२ ॥ णयरणामु सामोरु सरोरुहदलनयणि णायरजण संपुन्न हरिस ससिहरवयणि । धवलतुंगपायारिहिं तिउरिहिं मंडियउ ण हु दीसइ कुइ मुक्खु सयल जण पंडियउ॥४३॥
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