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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति खमिउं खमाविउं मई खमिउ छव्विह जीवनिकाय । सिद्धह दिन्ना लोयणा नइ मह वइरु न पावु ॥ हिव दुकृतगरिहा करउं । जु अणादि संसारमाहि हीडतइ हूतइ ईणि जीवि मिथ्यात्वु प्रवर्ताविउ । कुतीर्थ्य संस्थापिउ कुमार्ग प्ररूपिउ सन्माणु अवलपिउ। हिवु ऊपाजि मेव्हिं, सरीरु कुटुंबु जु पापि प्रवर्तिउ, जि अधिगरण हल ऊखल घरट घरटी खांडां कटारी अरहट्ट पावटा कूप तलाव कीधां कराव्यां अनुमोद्या ते सवे त्रिविधि त्रिविधि वोसिरावउ । देवस्थानि द्रवि वेचि पूजा महिमा प्रभावना कीधी तीर्थजात्रा रथजात्रा कीधी पुस्तक लिखाव्यां साधर्मिक वाछल्य कीधां तप नीयम देववंदनवांदणांइ सज्याइ अनेराइ धर्मानुष्ठानतणइ विषइ जु ऊजमु कीधर सु अम्हारउ सफल हुओ। इति भावनापूर्वकु अनुमोदउ ।
( चौदमो सैको पूरो)
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