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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति । एसो पंच नमोकारो ॥ एउ पंचपरमेष्ठिनमस्कार । पंच परमेष्टि किसा ? जि पूर्वोक्त भणिया अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधु इह पंचपरमेष्ठिनमस्कारु भावि क्रियमाणु हुँतउं किसउं करइ ?
सव्वपावप्पणासणो ॥ सर्वपापप्रणास कारियउ हुइ । ईणि जीवि चतुर्गतिकि संसारि भवभ्रमणु करतइ हुंतइ जि असुभलेश्या उपायी पापु सु ईणि पंचपरमेष्ठिनमस्कारि महामंत्रि सुमरीतइ हुंतइ क्षउ हुयइ । । ___ मंगलाणं च सव्वेसिं पढम होइ मंगलं ॥ ईणि संसारि दधि-चंदनदूर्वादिक मंगलीक भणियइ । तीह मंगलीक सर्वहीमांहि प्रथमु मंगलु एहु । ईणि कारणि सुभकार्यआदि पहिलउं सुमरेवउं जिव ति कार्य एहतणइ प्रभावइ वृद्धिमंता हुयइ । यउ नमस्कारु अतीत–अनागत-वर्तमानचउवीसीआदिजिनोक्तसारु । सु तुम्हे विसेषहइ हिवडातणइ प्रस्तावि अर्थयुक्तु ध्येयु ध्यातव्यु गुणेवउ पढेवउ । xxx अनइ एहु नमस्कार स्मरता इहलोकतणा भय नासइ । xxx ईणि नवकारि नव पद पांच अधिकार सत्तसहि अक्षर तीहमाहि छ भारी इकसठि लघु । इसउं नमस्कारतणउं माहातम्यु।
अतिचार संवत् १३६९-(प्राचीन गुर्जरकाव्यसंग्रह, वडोदरा)
तउ तुहि ज्ञानाचार + + + पंचविध आचार विषझ्या अतीचार आलोउ । ज्ञानाचारि कालवेला पढिउ गुणिउ विनयहीनु बहुमानहीनु उपधानहीनु गुरुनिन्हवु अनेरीकन्हइ पढिउं अनेरउ कहिउ । व्यंजनकूट अक्षरकूट कानइ मात्र आगलउ ओछउ देवबंदणइ पडिक्कमणइ सज्झाओ करतां पढतां गुणतां हुओ हुइ, अर्थकूट तदुभयकूट ज्ञानोपकरणि पाटी
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