________________
चौदमा अने पन्दरमा सैकानुं पद्य तथा गद्य ५०५ पूजा महिमा अरिहइ जि उत्पन्नदिव्यविमलकेवलज्ञान, चउत्रीस अतिशयि समन्वित, अष्टमहापातिहार्यशोभायमान महाविदेहि खेत्रि विहरमान-तीह अरिहंत भगवंत माहरउ नमस्कारु हउ ॥१॥
नमो सिद्धाणं ॥ महारउ नमस्कार सिद्ध हउ । किसा जि सिद्ध दुष्टाष्टकर्मक्षउ करिउ जि मोक्षि ग्या। आठ कर्म किसा भणियइ ? ज्ञानावरणीउ x x x अंतराउ ईह आठकर्मक्षउ करिउ जि सिद्धि ग्या । किसी ज सिद्धि; लोकतणइ अग्रविभागि पंचत्तालीस लक्षयोजनप्रमाणि जिसउं उत्ताणु छत्तु तिसइ आकारि ज सिद्धिसिला, अमलनिर्मल जलसंकास जु अजरामरस्थानु तेह ऊपरि योजनसंबंधियइ चउवीसमह य विभागि जि सिद्ध अनंत सुखलीण ति सिद्ध भणियइ । तीह सिद्ध महारउ नमस्कारु हउ ॥२॥
नमो आयरियाणं ॥ माहरउ नमस्कारु आचार्य हुउ। किसा जि आचार्य ? पंचविधु आचारु जि परिपालइ ति आचार्य भणियइ । किसउ पंचविधु आचारु ? ज्ञानाचारु + ++ वीर्याचारु, यउ पंचविधु आचारु जि परिपाल इति आचार्य भणिइ। तीह आचार्य माहरउ नमस्कार हउ ।
नमो उवज्झायाणं॥ माहरउ नमस्कार उपाध्याय हुउ। किसा जि उपाध्याय ? द्वादशांगी जि पढइ पढावइ । किसी ज द्वादशांगी ? आचारांगु सुयगड + + + दृष्टिवादु ए बार आंग जि पढइ पढावइ ति उपाध्याय भणियइ । तीह उपाध्याय माहरउ नमस्कारु हुउ। ___ नमो लोए सव्वसाहूणं ॥ ईणि लोकि जि कोई अछइ साधु । यउ लोकु च किसउ भणियइ । अढाई द्वीपसमुद्र पनर कर्मभूमि । xxx ईह पनर कर्मभूमिमाहि जि केई अच्छइ साधु । xxx तीह साधु सर्वहीं माहरउ नमस्कारु हुउ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org