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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
रमणि पसंसइ राजल कन्न जीह कंतु वसि ते पर धन्न ।
जसु प्रिउ न करइ किमइ मुहाडि सा हउं इक्क ज भुंडनिलाडि ॥ ३१ ॥ जिट्ठ विरहु जिम तप्पइ सूरु घणविओगि सुसियं नइपूरु । पिक्खिर फुल्लिउ चंपइविल्लि राजल मूछी नेहगहिल्लि ॥ ३२ ॥ मूछी राणी हा सखि ! धाउं पडियउ खंडइ जेवडु घाउ । हरिय मूछ चंदण-पवणेहिं सखि आसासइ प्रियवयणेहिं ॥ ३३ ॥ भणइ देवि विरती संसार पडिखि पडिखि मइ जादवसार । नियपडिवन्नउं प्रभु संभारि मइ लइ सरिसी गढि गिरिनारि ॥ ३४ ॥ आसाह दिदु हियउं करेवि गज्जु विज्जु सवि अवन्नेव । भइ वयणु उग्रसेणह जाय करिसु धम्मु सेविसु प्रियपाय || ३५ ॥ मिलिउ सखी राजल पभणंति चिणय जेम न मिरिय खज्जति । अउगी अच्छि सखि झखि मन आल तपु दोहिल्लउ तरं सुकुमाल || ३६ अठभव विलसिउ प्रियह पसाइ किमइ जीवु सखि सुख न धाइ । हिव प्रिय सरिसउं जीविय मरणु इण भवि परभवि निमि जु सरणु ॥ ३७ अधिक मासु सवि मासहि फिरइ छह रितुकेरा गुण अणुहर | मिलिवा प्रिय ऊबाहुलि हय सउ मुकलाविय उग्रसेणधूय ॥ ३८ ॥ पंच सखी सइ जसु परिवारि प्रिय ऊमाही गइ गिरिनारि । सखीसहित राजल गुणरासि लेइ दिक्ख परमेसरपासि ॥ ३९ ॥ निम्मल केवलनाणु लहेवि सिद्धी सामिणि राजलदेवि । रयणसिंहसूरि पणमवि पाय बारइ मास भणिया मइ भाय ॥ ४० ॥ नेमि कुमरु सुमरवि गिरनारि सिद्धी राजल कन्नकुमारि ।
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