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चौदमा अने पन्दरमा सैकानुं पद्य तथा गद्य
माहमासि माचइ हिमरासि देवि भणड़ मइ प्रिय लइ पासि । तइ विणु सामिय दहइ तुसारु नवनव मारिहि मारइ मारु ॥ २० ॥ इहु सखि रोइसि सहु अरन्नि हत्थि कि जा ( ना ?) मइ धरणउ कन्नि । तउ न पतीजिसि माहरी माइ सिद्धिरमणिरत्तउ नमि जाइ ॥ २१ ॥ कंति वसंत हियडामाहि वाति पहीजउं किमह लसाइ ।
सिद्धि जाइ तउ का इत बीह सरसी जाउ त उग्रसेणधीय ॥ २२ ॥ फागुण वा - गुण पन्न पडंति राजलदुक्खि कि तरु रोयंति । गब्भि गलिवि हउं काइ न मूय भणइ विहंगल धारणिधूय ॥ २३ ॥ अजिउ भणिर करि सखि विम्मासि अछर्इ भला वर नेमिहि पास । अनु सखि मोदक जउ नवि हुंति छुहिय सुहाली कि न रुवंति ॥ २४ ॥ मणह पासि जड़ वहिलउ होइ नेमिहि पासि ततलउ न कोई । जइ सखि वरउ त सामल धीरु घण विणु पियड़ कि चातकु नीर ॥ २५॥ चैत्रमासि वणसई पंगुरइ वणि वणि कोयल टहका करइ । पंचबाण करि धनुष धरेवि वेझइ मांडी राजलदेवि ॥ २६ ॥
जुइ सखि मातउ मासु वसंतु इणि खिलिज्जइ जड़ हुइ कंतु । रमियर नव नव करि सिणगारु लिज्जड़ जीवियजुव्वण सारु ॥ २७ ॥
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सुणि सखि मानिउ मुझु परिणयणु नवि ऊवरि थिउ बंधववयणु । जइ पडिवन्नइ चुक्कइ नेमि जीविय जुव्वणु जलणि जलेमि ॥ २८ ॥
वइसाहह विहसिय वणराइ मयणमित्तु मलयानिलु वाइ । फुट्टि र हियडा ! माझि वसंतु विलवइ राजल पिक्खिर कंतु ॥ २९ ॥
सखी दुक्ख वीसरिवा भाइ संभलि भमरउ किम रुणझुण । दीस पंच थिरु जोव्वणु होइ खाउ पियउ विलसउ सहु कोइ ॥ ३० ॥
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