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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
सखि नवि खीना नेमिहिरेसि मन आपणपउं तउं खय नेसि । जिणि दिक्खाडिउ पहिलङ छेहु न गणिउ अट्ट भवंतर नेहु ॥९॥ नेमि दयालू सखि निरदोसु कीजइ उग्रसिण ऊपरि रोसु । पसुय-भराविउ मूकउ वाडु मुझु प्रियसरिसउ कियउ विहाडु ॥ १०॥ कत्तिग क्षित्तिग ऊगइ संझ रजमति झिझिउ हुइ अतिझंझ । राति दिवसु अछइ विलवंत वलि वलि दय करि दय करि कंत ॥११॥ नेमितणी सखि मूकि न आस कायरु भग्गउ सो घरवास । इम इइसी सनेहल नारि जाइ कोइ छंडवि गिरनारि ॥ १२ ॥ कायरु किम सखि नेमि जिणंदु जिणि रिणि जित्तउ लक्खु नरिंदु । पुरइ सासु जा अग्गलि नास ताव न मिल्हउं नेमिहि आस ॥ १३ ॥ मगसिरि मग्गु पलोअइ बाल इण परि पभणइ नयणविसाल। जो मइ मेलइ नेमिकुमार तसु णीवेल(?) वहउ सविवार ॥ १४ ॥ एहु कदाग्रहु तउ सखि मिल्हि करिसि काइ तिणि नेमिहि हिल्लि । मंडि चडाविउ जो किर मालि 'हे हे कु' करइ टोहणकालि ॥ १५॥ अठभव सेविउ सखि मइ नेमि तसु ऊमाहउ किम न करेमि । अवगन्नेसइ जइ मइ सामि लग्गी अछिसु तोइ तसु नामि ॥ १६ ॥ पोसि रोस सवि छंडिवि नाह राखि राखि मइ मयणह पाह । पडिउ सीउ नवि रयणि विहाइ लहिय छिद सवि दुक्ख अमाइ ॥१७॥ नेमि नेमि तू करती मुद्धि जुन्यणु जाइ न जाणिसि सुद्धि । पुरिसरयणभरियउ संसारु परणि अनेरउ कुइ भत्तारु ॥ १८ ॥ भोली तउ सखि खरी गमारि वरि अच्छंतइ नेमिकुमारि । अन्नु पुरिसु कुइ अप्पणु नडइ गइवरु लहिउ कु रासभि चडइ ॥ १९॥
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