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पद्यभाग ( १ )
विनयचंद्र - चौमो सैको नेमिनाथचतुष्पदिका (प्राचीन गुर्जरकाव्यसंग्रह, वडोदरा ) सोहगसुंदर घणलायन्नु सुमरवि सामिउ सामलवन्तु ।
सखि पति राजल चडिउत्तरिय बारमास सुणि जिम वज्जरिय ॥ १ ॥ नेमि कुमरु सुमरवि गिरनारि सिद्धी राजल कन्न कुमारि । आंकिणी ॥ श्रावणि सरवणि कडुयं मेहु गज्जइ विरहिरि झिज्जर देहु । विज्जु झक्कड़ रक्खसि जेव नेमिहि विणु सहि सहियइ केम ॥ २ ॥ सखी भणइ सामिणि मन झूरि दुज्जणतणा म बंछित पूरि । गयउ नेमि तउ विणठउ काइ अछछ अनेरा वरह सयाइ || ३ || बोलइ राजल तर इहु वयणु नत्थी नेमिसमं वररयणु ।
धरइ तेजु गहगण सवि ताव गयणि न उग्गइ दिणयरु जाव || ४ || भाद्रवि भरिया सर पिक्खेवि सकरुण रोअइ राजलदेवि । हा एकलडी मइ निरधार किम ऊवेषिसि करुणासार ॥ ५ ॥ भइ सखी राजल मन रोइ नीठुरु नेमि न अप्पणु होइ । सिंचिय तरुवर परि पलवंति गिरिवर पुण कडडेरा हुंति ॥ ६ ॥ साचउं सखि वरि गिरि भिज्जंति, किमइ न भिज्जइ सामलकंति । घण वरिसंतइ सर फुवंति सायरु पुण घणु ओहडु लिति ॥ ७ ॥ आसो मासह अंसुप्रवाह राजल मिल्हड़ विणु नमिनाह । दह चंदु चंदण हिमसीउ विणु भत्तारह सउ विवरीउ ॥ ८ ॥
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