SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आमुख २९ ते मूळभूत प्राकृतनुं आदिम स्वरूप आपणी सामे नथी परंतु विशेष . परिवर्तनवाळु तेनुं साहित्यिक स्वरूप वर्तमानमां 3 उपलब्ध छे. प्राचीन प्राकृतमा लिपिबद्ध थयेली साहित्य अशोकनी धर्मलिपिओ वगैरे शिलालेखो, आचारांग वगेरे जैन अंगउपांग ग्रंथो अने मज्झिमनिकाय आदि बौद्ध पिटक साहित्य वगैरेमानुं जे प्राकृत आपणने वांचवा मळे छे ते द्वारा आदिम मूळभूत प्राकृतना स्वरूपनी आछी कल्पना करी शकाय खरी. २० आदिम प्राकृतना समयविशे कहेवू होय तो एम जरूर कही शकाय के जे काळे वेदोनी भाषा जीवती हती ते आदिम प्राकृतनुं काळने आदिम प्राकृतना आविर्भावनो काळ गणी स्वरूप अने समय शकाय—वेदोनी ऋचाओमां जे भाषा वर्तमानमां सचवायेली छे ते आज हजारो वर्षथी बोलाती बंध थई गई छे. परन्तु ज्यारे ते मात्र शिष्टोनी नहीं किन्तु सर्वजनमां व्यापेली साधारण भाषारूपे जीवती हती त्यारे तेनुं ' आदिम प्राकृत' नाम आपी शकाय. २१ उक्त कारणोने लीधे परिवर्तनना प्रवाहमां पडेली जीवती वैदिक भाषाने आर्योनी जीवंत भाषा कहो के आदिम प्राकृत जीवती वैदिक कहोः ज्यारे भाषा बोलवाना व्यवहारमा होय छे त्यारे भाषा अने आदिम "प्राणवंती होय छे, एवी चेतनवंती भाषा कदी एक प्राकृत ए बन्ने । एक जो रूपमां ज जकडाई रहेती नथी, तेमां एक ज शब्दनां अनेक उच्चारणो प्रवर्ते छे. आ जातनुं उच्चारणवैविध्य ज भाषानुं जीवंतपणुं छे. २२ आपणे एक एवो समय कल्पीए के ग्यारे वैदिक भाषा बोलवाना अने लखवाना बन्ने उपयोगमा आवती हती. अहीं ए न भूलवू जोईए के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy