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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति जे भाषा लखवाना उपयोगमां रूढ थई गई होय-लिपिबद्ध साहित्यमां ऊतरी गई होय तेमां परिवर्तननो अवकाश नहिवत् रहे छे. परंतु जे भाषा निरंतर बोलवाना प्रवाहमां बहेती होय, जेने स्त्रीओ, वृद्धो, अभण लोको जेवा के गोवाळियासुद्धा वापरता होय ते भाषा परिवर्तनना प्रवाहमां पड्या विना न ज रही शके.. २३ अमुक स्वर उदात्त बोलवो, अमुक स्वर अनुदात्त बोलवो ए
प्रकारनां वैदिक शब्दो संबंधे प्रवर्ततां उच्चारणनियजविती वादक मनो जोतां ए जरूर जणाई आवे एवं छे के ब्यारे भाषामां उच्चारणोनुं अनियंत्रण त
ते भाषा बोलवाना पूरपाट प्रवाहमा तणावानी अव
स्थाए पहोंची हशे त्यारे तेमां ते नियमनो सचवावां शक्य ज नहीं रह्यां होय. संस्कारी लोकोमा य वैदिक स्वरोनां उक्त उच्चारणो आजे अशक्य जेवां थई पड्यां छे तो पछी यास्कनी पहेलांना साधारण जनसमूहमा आजनी जेवी अशक्यता कल्पवी कठण भासती नथी. ऊलटुं पाणिनिए प्रवर्तावेली स्वरप्रक्रियानां नियमनो एम सूचवे छे के तेमना समये साधारण जनसमूहमा उच्चारणोनी अराजकता प्रवर्तती हती अने ते अराजकता वैदिक कर्मकांडमां न पेसे ते माटें तेमने आखी स्वरप्रक्रिया रचवी पडी हती.
२४ आजे पण आपणी चालु भाषामां एक शब्द संबंधे य स्वरगत
उच्चारणो जुदां जुदां मालूम पड़े छ : काम-कांमजीवती भाषामां कॉम । लींबडो-लेबडो। ईम-एम । जीम जेम ।
उच्चारणोनी तीम तेम । नथी-नथ । नानु नेनुं । जेनु-जीनुं । व्यवस्था न ज रही शके
" ए रीते बोलवाना व्यवहारमा आवता वैदिक शब्दोमां
य स्वरगत विविध उच्चारणो प्रवर्ततां हतां.
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