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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति ___“न म्लेच्छितवै नापभाषितवै म्लेच्छो ह वा एष यद् अपशब्दः म्लेच्छा मा भूम इति अध्येयं व्याकरणम् "- [ महाभाष्य पृ० ४] अपभ्रष्ट बोलनारने आ रीते म्लेच्छ थई जवानी सखत धमकी छतां य आर्यभाषामां अनार्य शब्दोनो पेसारो अटकी शक्यो नहीं.
१७ तात्पर्य ए छे के उच्चारणोनी शुद्धि जाळवनारा समाजमां पण ए रीते भाषाभेदना निमित्तो हमेशने माटे ऊभा ज होय छे तेथी ऊपर कडं छे तेम स्पष्टभाषानी उत्पत्ति अने तेनां भेदक कारणोनी उत्पत्ति ए बन्ने सहभू होवी असंभवित भासती नथी.
१८ एम छे छतां य संस्कृतिनी दृष्टिथी भाषा-भाषा वच्चनो विवेक थई शके छे. भाषाभेदना निमित्तो गमे तेटलां प्रबळ होय तो पण शब्दो
पोताना मूळ स्वरूपने छोडता नथी, उच्चारणोमां विविध उच्चारणोनुं विपर्यासनो प्रवाह प्रबळरीते वहेतो होय तो पण तेवां
ता विपरीत उच्चारणोमां य प्राचीनतम वटवृक्षना मूळनी संस्कृतिनी दृष्टिए
पेठे ते ते शब्दो मूळरूपे दटायेला ज होय छे. धूळभेदनी परख धोया जेवा शब्दशास्त्रीओ एवां मूळ रूपोने शोधी
काढी अने तेमनुं परस्पर तुलनात्मक परीक्षण करी भाषा-भाषा वच्चेना विभागने समझी शके छे अने आपणा वेदवाराना इन्द्रादिक शब्दशास्त्रीओए ए रीते ज आर्यभाषा अने अनार्यभाषा वच्चेना भेदने पारखी तारवी बताव्यो छे. १९ अहीं गुजराती भाषाना तुलनात्मक संबंधने लक्ष्यमां राखीने
र वर्तमान सर्व आर्यभाषाओना मूळभूत व्यापक सर्व आर्यभाषा- प्राकृत भाषाना प्रादुर्भावनी थोडी चर्चा करी ओना मूलभूत लेवानी छे. व्यापक प्राकृतनी
चर्चा
भाषा
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