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आमुख
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भाष्यकारनो उक्त उल्लेख एवं ठरावे छे के ' गम्' धातु आर्यशाखानो छे, ' शब्' कंबोज प्रदेशनो छे अने ' हम्म्' धातु सुराष्ट्र तरफनो तथा ' रंहू ' धातु प्राच्यमध्य बाजुनो छे. ( प्राच्यमध्य एटले पूर्वना मध्य देशोआर्यावर्तमां जे देशो पूर्वमां आवेला छे तेओमां जे मध्यवर्ती देशो छे ते मगध' वगैरे देशो.)
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१६ खुद वेदमां पण ' पिक' वगैरे केटलाक शब्दो एवा मळे छे के जेमनी परंपरा म्लेच्छोमां जळवायेली होय. महर्षि वेदोमां पण अनार्य जैमिनिए रचेला मीमांसादर्शनमां " चोदितं तु प्रतीशब्दोनो प्रवेश येत अविरोधात् प्रमाणेन ” – [ अध्याय १ पाद ३ सू० १० अधिकरण ५ ] एवं एक सूत्र छे. तेना भाष्यमां श्रीशबरमुनि जणावे छे के—
" अथ यान् शब्दान् आर्या न कस्मिंश्चिदर्थे आचरन्ति म्लेच्छास्तु कस्मिंश्चित् प्रयुञ्जते यथा पिक नेम-सत - तामरस- आदिशब्दाः तेषु संदेहः । किं निगम-निरुक्त-व्याकरणवशेन धातुतोऽर्थः कल्पयितव्यः उत यत्र म्लेच्छा आचरन्ति स शब्दार्थः ? इति " तात्पर्य ए छे के वेदोमां ' पिक' 'नेम' 'सत' ' तामरस' वगेरे एवा केटलाक शब्दो मळे छे के जेमनो प्रयोग आर्य लोको करता नथी पण म्लेच्छो करे छे तो पछी एवा अनार्य शब्दोनो अर्थ शी रीते समझवो ? शुं निगम निरुक्त के व्याकरण द्वारा एवा शब्दोनो अर्थ मेळववो के म्लेच्छो जे अर्थमां ते शब्दोने वापरे छे ते अर्थ ग्रहण करवो ? आना उत्तरमां भाष्यकार जणावे छे के " ज्यां वैदिक परंपरा साथे कशो विरोध न आवतो होय त्यां म्लेच्छोए मानेलो अर्थ लेवामां य कशो बाघ नथी." उपर्युक्त उल्लेखो द्वारा एवं प्रमाणित थाय छे के आर्यभाषामां अनार्य भाषाना शब्दो पेसी गयेला हता अने ते पण लांबा समयथी.
३१ आनंदाश्रम (पूना) वाळी आवृत्ति.
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