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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति तन-'अकार्षीत् ' अने परोक्ष-'चकार' एम एक 'कृ' धातुनां त्रण जुदां जुदां क्रियापदो छे. प्राकृतमा संस्कृतनी पेठे नथी परंतु गुजराती जे छे. एक 'करीअ' वा 'करित्था' ('कृ' मुं) क्रियापद सर्वप्रकारना भूतकाळ माटे प्राकृतमा प्रचलित छे. __चालु भाषामां उक्त भूतकाळोनी स्पष्टता बताववी होय तो अद्यतन माटे 'आजे कयु' ह्यस्तन माटे ‘काले कयु' अने परोक्ष माटे 'घ' पहेलां कर्यु' एम बोलवु आवश्यक छ, एम गुणरत्न सूचवे छे. __ एज प्रमाणे अद्यतन भविष्य माटे ‘आजे करीश' ह्यस्तन भविष्य माटे 'काले करीश' अने घणा दूरना भविष्य माटे 'घणुं मोडेथी-पछीथी-करीश' -एम पण बोलवु जरूरी छे. संस्कृतमां जुदा जुदा भविष्यकाळने सूचववा जुदां जुदां क्रियापदोनो व्यवहार छे त्यारे प्राकृतमां तो गुजरातीनी जेवू धोरण छे. गुणरत्न कहे छे के रोज बे लाडवा जमतो' 'सो श्लोक भणतो'
. पांच गाऊ चालतो' वगैरे प्रयोगोमां आवेलां वर्तमानकृदंत अने
- (जिमतु) जमतो ( भणतउ) भणतो अने भूतकृदंतनो विवेक
" (चालतउ) चालतो-ए बधां भूतकाळसूचक पदो कतरि भूतकृदंत छे. जिमितः के जिमितवान् (जिमतु-जमतो) भणित: के भणितवान् (भणतउ-भणतो), चलितः के चलितवान् ( चालतउचालतो) ए रीते ए पदोनी उपपत्ति श्रीगुणरत्न सूचवे छे. मने लागे छे के ए उपपत्ति बराबर छे. एवां भूतकाळसूचक पदो अने 'करतउकरतो' वगैरे वर्तमानकृदंतनां पदो उच्चारणनी दृष्टिए लगभग मळतां छे छतां ए बन्नेनी उपपत्तिमा अहीं जणाव्या प्रमाणे विशेष अंतर छे, ए ध्यानमां राखवा जेतुं छे.
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