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चौदमो अने पन्दरमो सैको भविष्यकाळ—आजनउ (आजनो), कालनउ (कालनो), तेह परहउ (तेनी परनो-पछीनो):
करिसिइं (करशे) लेसिइं (लेशे) देसिई (देशे) बीजो० पु०-तूं करिसिइ (तुं करशे-करीश) लेसिइ (लेशे__ लईश ) देसिइ (देशे-दईश) बी० ब०-तुम्हे करिसिङ (तमे करशो) प्रथ० पु० ए० तथा ब०-हूं करिसु ( हुं करीश ) अम्हे करिसिउं
(अमे करीशुं) आशीर्वाद—करिज्यउ (करज्यो ) पढिज्यउ ( पढयो) मरिज्यउ ( मरज्यो) हुज्यउ ( होज्यो) ऊपर जणावेलां क्रियापदो अने वाक्योने श्रीगुणरत्ने क्रियापदने
. लगती संस्कृत विभक्तिओनी वपराश केवी रीते प्रयोगोनी मीमांसा करवी ? ते समझाववा नोंघेलां छे. ते क्रियापदोनो
व्यवहार अने आपणो चालु क्रियापदोनो व्यवहार एक बीजा ओतप्रोत छे. मात्र ते क्रियापदोमां 'अइ' 'अउ' के ' अउं' वगैरे अंतस्थित स्वरो जुदा जुदा रहेला छे, त्यारे आपणा उच्चारणमां ए स्वरो 'ए' 'ओ' के 'उ' रूपे परिणमी गया छे. त्वरित उच्चारणमां एवो परिणाम सुघट छे. गुणरत्ने भूतकाळ अने भविष्यकाळना त्रण त्रण भेदो संस्कृतनी अपेक्षाए जणाव्या छे; परंतु ते वखतनी अने अत्यारनी गुजरातीमां भूतकाळ के भविष्यकाळनी विविधता बतावनारां क्रियापदो जुदां जुदा रह्यां नथी. पन्नरमी शताब्दी, 'कीधउं' वा आज- 'कीर्छ'-'कयु' ए एक ज क्रियापद, अद्यतन ह्यस्तन के परोक्ष भूत एम त्रणे भूतकाळने जणावे छे, त्यारे संस्कृतमां तेम नथी. तेमां तो ह्यस्तन- अकरोत्' अद्य
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