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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति आगई ए चेला दिहाडी प्रति बि सहस्र सज्झाय गुणता (आगे
ए चेला दहाडा प्रत्ये बे सहस्र-हजार-सीय गणता) तुम्हे त्रिन्नि सई ग्रन्थ लिखता (तमे त्रणसें-श्लोक-ग्रंथ लखता) अम्हे सउ श्लोक पढता ( अमे सो श्लोक पढता–भणता) एउ गामि गिउ (ए गामे गयो) स्मर हो-संघ साथइ श्रीशजइ श्रीगुरु चालिआ (स्मर-स्मरण
कर हो-संघ साथे श्रीशत्रुजये श्रीगुरु चालवाना-चाल्या) जाण हो-मित्र अहे दिहाडे आपणि जलकेलि करता (जाण हो
मित्र! ए दहाडे-दिवसे-आपणे जलकेलि करवाना-करता) जाण हो-आपणि देवपणइ तीणइ विमानि वसता ( जाण हो
___आपणे देवपणे ते विमाने वसवाना-बसता) बीजो पुरुष-म करे (तुं म कर ) म करिजे (म करजे) म करिसि
(म करीश ) म दिइ (म दे) म देजे (म देजे) म देसि (म दईश) म जा (म जा) म रहिजिउं
(म रहेज्यो-रहेजे) आक्षेप-आक्रोश-म कीधु (म कीg-कर्यु-म करतो ) म लीधु (म लीधुं-म लेतो), म दीधु (म दीधुं-म देतो) म जईड (म जाजतो) रखे जीवतउ ( रखे जीवतो) रखे जातउ (रखे जातो) रखे करतउ (रखे करतो) रखे जीवतउ जे परावज्ञाई छतीइं
जीवइ ( रखे जीवतो जे परावज्ञा छतां जीवे छे) क्रियातिपत्ति-जइ किमइ अमुकं करत, लिअत, दिअत, तउ अमुकं
हुयत (जो कांई अमुक करत, लेत, देत, तो अमुक होत–थात) ३२१ 'स्वाध्याय' अने 'सज्झाय' ए बन्ने पर्यायशब्दो छे. जैनसंप्रदायमां 'सज्झाय' शब्द विशेष प्रचलित छे.
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