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________________ चौदमो अने पन्दरमो सैको ४८१ आर्यशाखानी तळपदी भाषानुं मूळ आदिम अपभ्रंशमां छे, प्राकृत तेनी मोटी माशी छे अने संस्कृत तेनी नानी पण समृद्ध माशी छे. एटले गुजराती कविओ संस्कृतनो प्रयोग न करे एम तो न ज बने. गुजरातीना जैन कविओ पण पोतानी कृतिओमां संस्कृत पदोनो उपयोग छूटथी करे छे; परंतु एटलामात्रयी कांइ तेमनी भाषा संस्कृतमूलक छे एम कहेवाय खरं ? घरेणां--अलंकृति-जोईने कोईना मूळ कारणनी शोध न थई शके; परंतु मूळ उपादान, योजना वगैरे ऊपरथी मूळ कारण समझी शकाय. आ जोतां गुजराती जैन अने वैदिक वा अन्य कविनी भाषा विशे अंतर समझ, ए भूलभरेलुं छे. जेओ प्राचीन गुजरातीनो अभ्यास करे छे तेओ उक्त हकीकतने स्पष्टपणे समझी शके छे. १७५ मूळ नाम अने विभक्तिसूचक शब्दने आगळपाछळ मूकवानी पद्धति विशे आगळ (पृ० ३२३) लखाई गयुं छे. प्रस्तुतमां केटलाक एवा प्रयोगो मळे छे के मूळ नाम अने विभक्तिसूचक शब्द वच्चे 'जि' अव्ययन व्यवधान होय. जेम केव्यवहितविभक्ति- कर्म जि हुई ( कर्मने ज), तीही जि रहइ वाळा प्रयोगो (तेने ज), महीं जि रहइ (मने ज) वगैरे. संस्कृत जेवी सुबद्ध भाषामां पण आवां उदाहरणो छे; भले विरल होय छतां छे तो खरां. जेमके तं पातयां प्रथममास'-'तं प्रथमं पातयामास' जोईए, ए ज रीते प्रभ्रंशयां यो नहुषं चकार' एने बदले 'यो नहुषं प्रभ्रंशयांचकार' शुद्ध पाठ छे. लोकभाषामां तो आवा व्यवधानवाळा प्रयोगो चाल्या ज करे छे. ३१९ रघुवंश सर्ग ९, श्लो० ६१ तथा सर्ग १३, श्लो० ३६. Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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