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चौदमो अने पन्दरमो सैको
४७७ विशेषपणे प्रचलित छे. तेम उक्त पारसी लेखकनी गुजरातीमां 'भुवन'नु 'भउवन' विनोद 'नुं 'वइनोद' 'सुख'- 'सउख' 'दुर्गधि'नुं 'दउगंधि' 'सुगंधपणुनुं 'सउगंधपणुं' 'निग्रह', 'नइग्रह' अने 'सुंदरनु ‘सउंदर' एवां स्वरविश्लेष अने स्वरवृद्धिवाळां पण रूपो वपरायेलां छे.
जे लेखकनो गाट परिचय प्राकृत साथे होय तेनी कृतिमां केटलांक प्राकृत उच्चारणो आवी जवानां, जेनो गाढ परिचय संस्कृत साथे होय तेनी कृतिमां संस्कृतनी असर थवानी ज, तेम पारसी लेखकनी भाषामां एमनी साथे विशेष परिचयवाळी अवेस्तावाणीनां उच्चारणो आवे ए स्वाभाविक छे. 'अग्विीरा'ना मुद्रित पुस्तकमां 'स्था ने बदले अनेक स्थळे 'स्छा' छपायेलुं छे, तथा 'स्वर्ग'ने बदले 'स्वर्ग' छपायेलुं छे. लखेली प्रतिओमां 'थ' अने 'छ एक सरखा जेवा जणाय छे. तथा बेवडा 'ग्ग'ने बदले लिपि लखनारा '' जेवो वर्ण लखे छे, एथी 'थ' अने 'छ'नो तथा 'ग्ग' अने ''नो विश्लेष न समझायाथी 'स्था ने स्थाने 'स्छा' तथा 'स्वर्ग'ने स्थाने 'स्वर्ग' छपायेलं जणाय छे, एवो मारो नम्र अभिप्राय छे.
ए पुस्तकनी भाषा पन्नरमा सैकानी छे एम तेनी अंतिम पुप्पिका ऊपरथी ज मालूम पडे छे. पुष्पिका आ प्रमाणे छे:__“संवत्सरेषु चतुर्दशशतेषु संवत्सर ७१ वर्षे " इत्यादि “अध्यारू बहिरामश्रुत अध्यारू लक्ष्मीधर लक्षतं" संवत १५०७ वर्षे मार्ग्रसर सितात द्वादिशी तिथौ सोम दिने अश्विनी नक्षत्रे वरैआन जोग्य ( वरियान्-वरीयसि-योगे ) प्रवर्तमाने श्री:नागसारकायां शुभं भवति" __ आ बन्ने प्रांत लेखो द्वारा पन्नरमा शतकना उत्तरार्धे तथा सोळमा शतकना आरंभे जे जातनी गुजराती प्रवर्तती हती तेनो स्पष्ट ख्याल आवे एम छे.
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