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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
बारमा शतकनी गुजराती ते ऊगती गुजराती के प्राचीन गुजराती, तेरमा अने चौदमा शतकनी गुजराती विशेष खीलेली के किशोर गुजराती अने पन्नरमा शतकनी गुजराती ते मध्यम वयनी गुजराती के आपणी तद्दन पासेनी गुजराती छे.
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उक्त कृतिओमां क्यांय क्यांय ' सागिल्लि' जेवा देश्य शब्दो वपरायेला छे अने बीजी भाषाना 6 गमार' जेवा शब्दो पण उपयोगमां आवेला परंतु ते घणा ज विरल छे.
छे;
१७३ अहीं आपेली पन्नरमा शतकनी कृतिओमां बे कृतिओ वैदिक परंपराना कवि असाइत अने कवि भीमनी छे. कवि असाइतनी 'हंसाउली' मां ' जातीसमरण' थापणिमोसु '' मिथ्याती ' ' आठ कर्म' 'वीरवचन ' वगैरे जैन पारिभाषिक शब्दो वपराया छे तेथी एम जणाय छे के कवि ( असाइत ) जैन धर्मना पारिभाषिक शब्दोनो विशेष परिचय धरावे छे अर्थात् जैन संप्रदाय साथे तेनो संसर्ग ठीक प्रमाणमां हशे. ते बन्ने कविओनी भाषा तरफ विद्वानोनुं लक्ष्य खेंचाय ए माटे आ स्थळे थोड्रंक वधारे जणाववुं जरूरी छे. साक्षरोमां एक एवो जूनो मत प्रचलित छे के जैन कविओनी भाषा अने वैदिक कविओनी भाषा वच्चे अंतर छे. जैन कविओनी भाषा प्राकृतमूलक छे अने वैदिक कविओनी भाषा संस्कृतमूलक छे. बन्नेनी भाषा छे तो गुजराती परंतु तेना मूळ प्रवाहो जुदा जुदा छे. आ मत, हुं मानुं छं ते प्रमाणे तद्दन भ्रांतिमूलक छे अने अद्यतन विद्वानो पण आ मतने मिथ्या माने छे. अहीं आपेली असाइतनी अने भीमनी कृति ऊपरथी आपणे स्पष्टपणे जाणी शकीए छिए के
वैदिक लेखकनी अने जैन लेखकनी समान गुजराती
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