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चौदमो अने पन्दरमो सैको
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द्वारा इतकओ - इतअओ - इतअउ - इतर ए रीते पण 'इतर'ने समझावी
शकाय.
'इतर 'नी पेठे एक 'तउ' प्रत्यय पण पंचमीने सूचवे छे. ते 'तउ' अने संस्कृतमां पंचमीना अर्थे वपरातो 'तस्' ए बे बच्चे विशेष समानता छे. एथी तस्- (७-३-३१ हैं० ) तकस्- तअओ - अउ - तउ ए रीते ' तउ' ने साधी शकाय अने ते ' तउ' द्वारा ' थउ ' ने पण लावी शकाय. ' तकस्' ना 'क' नो लोप न करीए तो तकओ - तकउ - थकउ ए रीते 'थकउ' ने पण लावी शकाय अने हेमचंद्रे सूचवेला ( ८-४-३४१ ) पंचमीना ' हुं 'ने फरी वार पंचमीसूचक 'तो' ( तसू - तो ) लगाडवाथी ' हुंतो ' ने साधी शकाय अथवा प्राकृतमां पंचम्यर्थे वपरातो ' सुंतो ' ' हुंतो ' अने प्रस्तुत 'तो' ए बधा एक ज केम न होय ? स्वरोनुं परिवर्तन भाषामां साधारण रीते प्रचलित छे एटले छेडे के बच्चे भिन्नभिन्न स्वरवाळा ए प्रत्ययोनी उपपत्ति उक्त रीते संगत थई शकशे. आ माटे विशेष स्पष्ट करवा भाषाविदोने मारी नम्र विनंती छे.
१७१ पन्दरमा शतक पहेलांनी गुजरातीमां 'छे' नो उपयोग कोई बीजा क्रियापदनी साथ थतो जाण्यो नथी त्यारे पन्दरमा शतकना अंतनी गुजरातीमां ' कहड़ छन्' ' कहि छइ' - एवा प्रयोगो मळे छे, तेनो अर्थ ' कहे छे' ए स्पष्ट छे. ए ऊपरथी मालूम पडे छे के चालु गुजरातीमां जे रीते 'छे' नो प्रयोग सहायक - क्रियापद तरीके थाय छे, ते ज रीते पन्दरमा शतकना अंतनी गुजरातीमां पण 'छे' नो उपयोग थयेलो छे. आ प्रकारे प्रत्ययो, क्रियापदो अने आगळ जणावेला शब्दो जोतां पन्नरमा शतकनी गुजराती, अत्यारनी गुजरातीनी विशेष निकट छे.
१७२ पन्दरमा शतकनी गुजरातीना नमूनाओमां एक नमूनो लक्ष्मी
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