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________________ ४७२ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति 'इ' प्रत्यय वपरातो, ते नामने छेडे जुदो रहेतो के नामना अंत्यस्वर साथे मळीने रहेतो. प्रस्तुत कृतिओमां तेवा प्रयोगो उपरांत नामना अंत्य स्वर साथे मळीने के जुदो रहेतो 'ए' पण वपरायेलो छे; जेहे, घणे, बीजीए, देवताए. आपणी चालु गुजरातीमां तृतीयाना 'ए'नो उपयोग पण ए रीते ज प्रवर्ते छे. ___ पन्दरमा सैकानी कृतिओमां वपरायेली षष्ठीना प्रत्ययोमां-रहई, रहइ, हुई, तणउं, तणी, नी, तणा, नां, नउं, मुं, नउ, नु, ह अने चा एटलानो समावेश छे. आमांना केटलांक तो परंपराथी चाल्यां आवे छे; परंतु रहइ, रहई, हुई, नां, नु, नु, नी अने 'चा' एटला प्रत्ययो आ सदीमां नवा आव्या छे. नवा एटले अभूतपूर्व एम नहीं पण अगाउ नहीं वपरायेला एवा. 'तणउ' नो 'नु' 'तणई' नो 'नी' अने 'तणउं' नो 'मुं' ए रीते ‘नु' 'नी' अने 'नु' नी उपपत्ति छे. चालु भाषामां आ प्रत्ययो छूटथी वपराय छे. त्यारे उक्त कृतिओमां ए प्रत्ययो उपरांत 'तणउ' वगेरे प्रत्ययो पण वपरायेला छे. चालु भाषामां य कवितामां 'तणो 'नो उपयोग चालु छे, ए ध्यानमा रहे. चोथी, छठी अने बीजीना प्रत्ययोमा विशेष भेद नथी. एथी चोथी अने बीजीना प्रत्ययोनी चर्चा जुदी नथी करतो. पन्दरमी सदीमां वपरायेला 'रहइ' रहइं' के ' हुई' ना मूळनो ख्याल स्पष्ट नथी आवतो छतां हेमाचार्य सूचवेला तादर्थ्यसूचक 'रेसि' के रेसिं 'मां तेमनुं मूळ संभवित छे अथवा तादर्थ्यसूचक 'रेसि' + 'केहिं' ए रीते बे निपातना जोटा द्वारा आवेला रेसिकेहिं' ए जातना पदमां पण तेमना मूळनो संभव छे. चतुर्थी अने षष्ठीमां भेद नथी एथी ज तादर्थ्यसूचक उक्त निपातो, षष्ठीसूचक ‘रहइ' वगैरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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