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________________ ४४६ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति पृ० ७९ ढंखर-(झांखरूं-सूकुं के बळी गयेलं झाड-ठुठं. देशीसंग्रहमां हेमचंद्रे 'सूका झाड' अर्थनो 'झंखर' शब्द आपेलो छे: वर्ग ३, गाथा ५४) पृ० ६८ सोरंड-(क्रीडाभाजन ) पृ० ६५ अरमणि-(करवत) पृ० ३९ वरक्किय-(पटी-कपडं-बूरखो ? " लइवि वरक्किय ससिसउन्नु फंसहि वयणु" गा० ९८, पृ. ३९ अर्थात्" “वरकिय' ने लईने-दूर करीने-चंद्र जेवा संपूर्ण मुखने साफ कर" आ अर्थ जोतां 'वरक्किय' शब्दनो संबंध 'बूरखा' साथे कदाच होय. टिप्पनकारे “वरकी पटि (टी)” अने अवचूरिकाकारे 'वरक्की' ने बदले “वराकी पटीं" एम कहेलं छे. रासकारे 'छे' अर्थनो द्योतक धातु, आ प्रमाणे वापर्यो छे : पृ० ६८ अच्छिहि-(छे) पृ० १५ आहि-(छे, हे के है अथवा आहे ) पृ० ३१ अच्छउं-(छु) तादर्थ्य अर्थ माटे-चतुर्थीना अर्थ माटे रासकारे (“ नहु रहइ बुहा कुकवित्तरेसि"-गा. २१, पृ. ९) 'रेसि' निपातने पण वापरेलो छे. जे विशे आगळ कहेवाई गयुं छे. आ प्रमाणे रासनी भाषानो संक्षिप्त परिचय कराववा प्रस्तुत आ थोडं निवेदन कर्यु छे. रासनी वस्तु-आ विशे भाषणमा जणावेलुं छे. विशेषमा जणाववानुं के रासनी नायिका 'विजयनगर-विक्रमपुर-बीकानेर' नी छे. संदेशवाहक 'सामोरु' के 'सामोर' जेनुं बीजुं नाम 'मूलत्थाण' छे त्यांथी पोताना मालिकनो लेख लई खंभात तरफ जाय छे. नायिकानो पति खंभातमा कमावा गयो छे, आ संदेशवाहकने खंभात जतो जाणी नायिका तेने पोताना पतिने आपवानो संदेशो पहोंचाडवा कहे छे. 'खंभात' माटे मूळमां ‘खंभाइत्त' शब्द वपरायेलो छे. मूलकारे पोते 'मूलत्थाण' नो परिचय आपतां कर्तुं छे के (“ तवणतित्थु चाउद्दिसि मियच्छि ! वखाणियइ" -गा०६५, पृ० २६) अर्थात् “ज्यां सूर्यनो कुंड-सूर्यनुं प्रसिद्ध तीर्थ-छे ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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